राष्ट्रपति क्यों झूठ बोल रहे हैं कि CAA लागू कर 'उनकी' सरकार ने गांधी जी का सपना किया है पूरा
माननीय राष्ट्रपति महोदय को बताना चाहिए कि जिन गांधी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता और आपसी खून खराबा रोकने के लिए लम्बा उपवास किया हो, उसका ऐसा कुत्सित सपना कैसे हो सकता है....
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
दुनिया के इतिहास में किसी भी देश में ऐसा पहली बार हो रहा होगा, जब जनता सहिष्णु है और सत्तापक्ष असहिष्णु हो चला है और भयभीत भी। इतना भयभीत कि झूठ को छोड़ भी दें तब भी हिंसा भड़काने पर उतारू हो चला है और अब तो मुख्यमंत्री को भी आतंकवादी घोषित कर दिया गया है।
दिल्ली के चुनाव की शुरुवात टुकडे-टुकडे गैंग की याद दिलाकर सत्ता पक्ष ने किया था। इसके ठीक बाद यशवंत सिन्हा ने किसी सभा में कहा था कि देश में टूकडे-टूकडे गैंग है जिसके दो ही सदस्य हैं और दोनों बीजेपी में हैं। बीजेपी के पूरी दिल्ली में बिखरे पड़े होर्डिंग्स को भी देखिये तो टुकडे-टुकडे गैंग वाली मानसिकता सीधे समझ में आती है।
इसमें लिखा है, “देश बदला, अब दिल्ली बदलो”। इसे पढ़कर कोई भी यही प्रश्न पूछेगा कि क्या दिल्ली देश का हिस्सा नहीं है? ऐसी ही भाषा का प्रयोग उत्तर प्रदेश के चुनावों के दौरान भी किया गया था। क्या, जहां चुनाव होते हैं वह हिस्सा देश का नहीं रहता, इस सवाल का जवाब असली और खांटी टुकडे-टुकडे गैंग से जरूर माँगा जाना चाहिए।
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प्रधानमंत्री मोदी तो हमेशा चुनावी मोड में ही रहते हैं। पिछले लोकसभा चुनावों के बीच बालाकोट का राग अलापा था, और इस बार बिना किसी सन्दर्भ के यह बताते हैं कि पाकिस्तान को हम केवल 7 से 10 दिनों में हराने की क्षमता रखते हैं। वर्ष 1971 में बांग्लादेश का युद्ध हुआ था जिसमें पाकिस्तान को हारने और बांग्लादेश के जन्म में महज 13 दिनों का समय लगा था।
ध्यान रहे कि उस समय ना तो इतनी संख्या में सेना थी और ना ही सेना के पास आज जैसे अत्याधुनिक हथियार थे। सेना तो उस दौर में टेक्नोलॉजी का सहारा भी नहीं था और ना ही सॅटॅलाइट चित्रों से विपक्षी सेना की गतिविधियों की निगरानी की जा सकती थी। उस समय सही में बादलों के बीच से राडार विमानों पर नजर नहीं रख पाता था। अगर 1971 में महज 13 दिनों में युद्ध जीता गया तो आज के 10 दिनों में युद्ध जीतने की बात अजीब लगती है, पर प्रधानमंत्री जी इसे ब्रेकिंग न्यूज़ जैसा प्रचारित करते रहे और मीडिया भी इसे कवर स्टोरी बनाता रहा।
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CAA-NRC, शाहीन बाग़ और फिर दिल्ली के चुनावों में गांधी जी की चर्चा खूब की गयी। पहले तो राष्ट्रपति की सरकार (राष्ट्रपति हरेक अभिभाषण में मेरी सरकार कहते हैं) के मुखिया ने गांधी जी को गलत तरीके से प्रस्तुत किया, पर अब तो राष्ट्रपति भी उसी राह पर आ गए हैं। राष्ट्रपति ने संसद में अभिभाषण के दौरान कहा कि CAA को लागू कर उनकी सरकार ने गांधी जी का सपना पूरा किया है। क्या आपको लगता है कि हिन्दू-मुस्लिम एकता और आपसी खून खराबा रोकने के लिए जिसने लम्बा उपवास किया हो, उसका ऐसा कुत्सित सपना हो सकता है?
26 सितंबर, 1947 को महात्मा गांधी ने अपनी प्रार्थना सभा के भाषण में कहा था, 'अगर न्याय के रास्ते पर चलते हुए सभी हिंदू और मुसलमान मर भी जाएं तो मुझे परेशानी नहीं होगी। अगर ये साबित हो जाए कि भारत में रहने वाले साढ़े चार करोड़ मुसलमान छिपे रूप से देश के ख़िलाफ काम करते हैं तो मुझे ये कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं है कि उन्हें गोली मार देनी चाहिए। ठीक इसी तरह अगर पाकिस्तान में रहने वाले सिख और हिंदू ऐसा करते हैं तो उनके साथ भी यही होना चाहिए। हम पक्षपात नहीं कर सकते। अगर हम अपने मुसलमानों को अपना नहीं मानेंगे तो क्या पाकिस्तान हिंदू और सिख लोगों को अपना मानेगा? ऐसा नहीं होगा।'
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इससे पहले आठ अगस्त 1947 को महात्मा गांधी ने 'भारत और भारतीयता' पर जो कहा वो सबसे ज़्यादा उल्लेखनीय है - 'हिंदुस्तान हर उस इंसान का है जो यहां पैदा हुआ और यहां पला-बढ़ाl जिसके पास कोई देश नहीं, जो किसी देश को अपना नहीं कह सकता उसका भी। इसलिए भारत पासरी, बेनी इसराइली, भारतीय ईसाई सबका है। स्वाधीन भारत हिंदूराज नहीं, भारतीय राज होगा जो किसी धर्म, संप्रदाय या वर्ग विशेष के बहुसंख्यक होने पर आधारित नहीं होगा, बल्कि किसी भी धार्मिक भेदभाव के बिना सभी लोगों के प्रतिनिधियों पर आधारित होगा।'
अमेरिका में वॉक्स न्यूज़ ने दो वर्ष पहले डेविड फारिस के इंटरव्यू को प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक है, “व्हाई दिस पोलिटिकल साइंटिस्ट थिंक्स द डेमोक्रेट्स हैव टू फाइट डर्टी”। डेविड फारिस रूज़वेल्ट यूनिवर्सिटी में राजनीतिक वैज्ञानिक हैं, और एक पुस्तक प्रकाशित की है, इट इस टाइम टू फाइट डर्टी। अमेरिका में इस पुस्तक की बहुत चर्चा है और इसमें कहा गया है कि ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी को परम्परागत राजनीति से नहीं हटाया जा सकता है, इसे हटाने के लिए ओछी राजनीति की जरूरत है। इस पुस्तक में भी यदि आप इसके आलेख से रिपब्लिकन के बदले अपने देश की सत्ताधारी पार्टी का नाम शामिल कर लें तो यह पुस्तक शत-प्रतिशत हमारे देश पर सटीक बैठती है।
डेविड फारिस बताते हैं, हम इस समय अमेरिका के पूरे इतिहास के सबसे खतरनाक मोड़ पर हैं। इस समय संवैधानिक संस्थाओं पर लोगों का भरोसा उठ चुका है और लोग चुनाव प्रक्रिया पर भी सवाल उठाने लगे हैं। ट्रम्प प्रशासन देश को राजनैतिक संस्कृति और परंपरा को खतरनाक तरीके से बदलने में कामयाब रहा है। ऐसे में डेमोक्रेटिक पार्टी केवल नीतियों की लड़ाई नहीं लड़ सकती। अनेक सामाजिक और राजनीतिक अध्ययनों के अनुसार आज के दौर में नीतियां चुनाव में कोई मायने नहीं रखतीं और अधिकतर लोग नीतियों के प्रभाव से अनजान बने रहते हैं।
डर्टी पॉलिटिक्स के लिए वैसी सोच बनाना बहुत जरूरी है, पर ऐसा कर पाना हमारे देश में कठिन है। यदि सत्ता पक्ष के नेताओं के भाषण का विश्लेषण करें तो पायेंगे कि 75 प्रतिशत से अधिक भाषण विपक्ष को कोसने में, 15 प्रतिशत गांधी-नेहरु में और 10 प्रतिशत से कम हिस्सा वो क्या कर रहे हैं, इसपर केन्द्रित होता है।
ऐसे में, विपक्ष को सत्ता पक्ष की आलोचना पूरी तरह से कुछ महीनों के लिए बंद कर देनी चाहिए, क्योंकि इसी आलोचना के कुछ वाक्य सत्ता पक्ष के बड़े नेताओं के भाषण का 75 प्रतिशत हिस्सा होते हैं। ऐसे में संभवतः सत्ता पक्ष के नेताओं के भाषण का समीकरण भी बदल जाएगा। पूरे विपक्ष को दीर्घकालीन रणनीति बनाकर वापस कुछ वर्षों के लिए जनता के बीच जाकर समर्पित कार्यकर्ताओं को तैयार करना होगा।