कहीं पड़ा महिलाओं के अधिकारों पर डाका तो कहीं मिल रहा बराबरी और सम्मान
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
हाल में ही महिलाओं के सशक्तीकरण और समानता के उद्देश्य से बनाए गए एक महिला संगठन नोबेल विमेंस इनिशिएटिव के साथ वरिष्ठ कर्मचारियों ने भेदभाव और पारदर्शिता के अभाव का हवाला देकर इस संस्थान से इस्तीफ़ा दे दिया। इससे पहले भी दुनिया के दो बड़े महिला संगठनों - इन्टरनॅशनल विमेंस हेल्थ कोएलिशन और वीमेन डिलीवर – में ऐसा हो चुका है।
जाहिर है समानता और पारदर्शिता के लिए बनाए गए इस प्रकार के संगठन स्वयं भेदभाव और असमानता से घिरे हैं। दूसरी तरफ रोमन कैथोलिक चर्च के मुख्यालय वैटिकन में हाल में ही बड़े पदों पर महिलाओं की नियुक्ति की गई है और वर्तमान पोप वैटिकन में लैंगिक समानता के अपने आश्वासन पर अमल करते नजर आ रहे हैं।
नोबेल विमेंस इनिशिएटिव के साथ-साथ दुनिया की अनेक बुद्धिजीवी और नोबेल पुरस्कार प्राप्त महिलायें जुडी हैं। इसका मुख्यालय कनाडा के ओटावा में है और इसकी स्थापना 2006 में की गई थी।
हाल में ही इससे 7 महिला कर्मचारियों ने भेदभाव, रंगभेद, नस्लभेद इत्यादि का आरोप लगाते हुए इस संगठन से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद दुनिया की 5 नोबेल पुरस्कार प्राप्त महिलाओं ने संस्थान से इन सभी आरोपों की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की है, और इसके ढाँचे में आधारभूत बदलाव की सिफारिश की है।
इन्होने लिखा है कि महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए समर्पित संगठन, जिसका मूल उद्येश्य शान्ति, न्याय और महिलाओं के अधिकार हैं, में भी यदि पारदर्शिता नहीं है, हरेक स्तर पर भेदभाव है, कुछ कर्मचारियों को भयभीत किया जाता है तब इससे अधिक आश्चर्यजनक कुछ नहीं हो सकता।
लेकिन, ऐसी समस्या केवल एक संगठन के साथ नहीं है। ऐसे ही आरोपों की आतंरिक जांच महिला सशक्तीकरण से जुड़े दो अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों (इन्टरनॅशनल विमेंस हेल्थ कोएलिशन और वीमेन डिलीवर) में भी की जा रही है।
दूसरी तरफ महिलाओं से भेदभाव के कारण लगातार चर्चा में रहे रोमन कैथोलिक चर्च के मुख्यालय वैटिकन में अब बड़े पदों पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। वर्तमान पोप फ्रांसिस को उदारवादी माना जाता है और इनके समय में अनेक ऐसे कदम उठाये गए हैं, जिन्हें अभूतपूर्व कहा जा सकता है।
कुछ वर्ष पहले पोप फ्रांसिस ने वैटिकन में बड़े पदों पर महिलाओं को बैठाने का आश्वासन दिया था। पिछले सप्ताह वैटिकन के पंद्रह-सदस्यीय इकनोमिक काउंसिल में 6 महिलाओं की नियुक्ति की गई है। यही काउंसिल वैटिकन के अर्थव्यवस्था की पूरी देखभाल करती है और यह सीधे पोप के नियंत्रण में है।
पोप फ्रांसिस ने ही इस काउंसिल की स्थापना वर्ष 2014 में की थी, और अब तक इसके सदस्य केवल पुरुष रहे हैं। इसमें 8 बिशप होते हैं, जाहिर है वे पुरुष ही होंगें, अन्य सात स्थान अनारक्षित हैं और इन्हीं में 6 महिलाओं की नियुक्ति की गई है।
नॅशनल कैथोलिक रिपोर्टर के वैटिकन संवाददाता जोशुआ मसल्वी के अनुसार ऐसा वैटिकन में पहली बार हो रहा है जब अनेक महिलायें उच्च पदों पर बहाल की गईं हैं। इससे पहले वैटिकन में उच्च पदों पर केवल दो महिलायें हैं – बारबरा जत्ता वैटिकन म्यूजियम की प्रमुख हैं और फ्रांसेस्का डी गिओवान्नी सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट्स के ऑफिस में अंडर सेक्रेटरी हैं।
वैटिकन में अब महिलाओं की भागीदारी तो बढ़ रही है, पर दुखद तथ्य यह है कि वहां पर रंगभेद और नस्लभेद पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जिन 6 महिलाओं को इकनोमिक कमेटी में शामिल किया गया है, सभी श्वेत हैं और यूरोप के देशों की हैं।
इनमें से 2 ग्रेट ब्रिटेन की, 2 जर्मनी की और शेष 2 स्पेन की हैं। ब्रिटेन की लेस्ली फेर्रर प्रिंस चार्ल्स की पूर्व कोषाध्यक्ष हैं। ब्रिटेन की ही रुथ केली लेबर पार्टी के दौर में, टोनी ब्लेयर और गॉर्डोन ब्राउन के शासन में, शिक्षा, श्रम, परिवहन और महिला मामलों जैसे विभागों में मंत्री रह चुकी हैं।
यह दुखद तथ्य है कि ऐसे समय जब वैटिकन में भी महिलाओं की संख्या बढ़ाकर लैंगिक समानता का प्रयास किया जा रहा है, तब महिला मामलों से जुड़े अनेक सामाजिक संगठन महिला कर्मचारियों के साथ ही रंग के नाम पर और नस्ल के नाम पर भेदभाव बरत रहे हैं।