कम्युनिस्टों की नजर में लैंगिक समानता केवल एक मिथक है : तस्लीमा नसरीन
कम्युनिस्टों की नजर में लैंगिक समानता केवल से मिथक है : तस्लीमा नसरीन
नई दिल्ली। चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ( Xi Jinping ) आगामी पांच साल के वहां के राष्ट्रपति ( President ) चुन लिए गए हैं, लेकिन सीसीपी की सर्वोच्च संस्था के पोलित ब्यूरो में किसी महिला को इस बार स्थान नहीं मिला है। उसके बाद बांग्लादेश की जानी-मानी लेखिका तसलीमा नसरीन ( Taslima Nasreen ) ने ट्विट कर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ( CCp )पर तंज कसा है। उन्होंने ताजा ट्विट में लिखा है कि पोलित ब्यूरो ( Politburo ) के लिए किसी महिला ( Women member ) का चयन नहीं किया गया है। इससे साफ है कि कम्युनिस्ट ( Communist ) मानते हैं कि लैंगिक समानता सिर्फ एक मिथक है।
यहां पर बता दें कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में पोलित ब्यूरो सर्वोच्च समिति है। इसके स्थायी समिति में सात सदस्य होते हैं, जो चीन की रूपरेखा तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
तस्लीमा ने ऐसा क्यों कहा?
No woman is selected for the Chinese Communist Party's Politburo. Communists believe in gender equality is just a myth.
— taslima nasreen (@taslimanasreen) October 24, 2022
संभवत: तस्लीमा नसरीन ( Taslima Nasreen ) ने ऐसा इसलिए कहा है कि चीन में अब एक भी महिला सदस्य सीसीपी पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति में नहीं हैं। तय है ऐसे में महिलाओं का सरकार में होना भी मुश्किल है। यहां पर सवाल यह उठता है कि आधी आबादी की का प्रतिनिधित्व करने वाला अब पोलित ब्यूरो में कोई नहीं है।
सीसीपी में अब पुरुषों का राज
दरअसल, राष्ट्रपति शी जिनपिंग ( Xi Jinping ) आगामी पांच साल के वहां के राष्ट्रपति ( President ) चुन लिए गए हैं। चार दशक पुराने नियम को त़ोड़ते हुए उन्हें रिकॉर्ड तीसरी बार कल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना ( CCp ) का महासचिव चुना गया था। पार्टी संस्थापक माओ जेदोंग के बाद वह ऐसे पहले चीनी नेता हैं, जो इस पद पर तीसरे कार्यकाल के लिए चुने गए हैं। इसके साथ ही चीन में एक रिकॉर्ड और बना है। अब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 7 सदस्यीय पोलित ब्यूरो ( Politburo ) की स्थायी समिति में कोई महिला सदस्य नहीं है। पिछले पोलित ब्यूरो में एक महिला सुन चुनलन ( Sun Chunlan ) थी, जो इस बार रिटायर हो चुकी हैं। शी जिनपिंग ने पोलित ब्यूरों में उनकी जगह किसी दूसरी महिला को स्थान नहीं दिया है।
सीसीपी के 25 सालों में ऐसा पहली बार होगा जब पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति यानि चीन की टॉप लीडरशिप में कोई महिला नहीं है। यानि शी जिनपिंग ( Xi Jinping ) के राज में पूरी तरह पुरुषों का एकाधिकार कायम हो गया है।
कम्युनिस्ट क्या है?
दरअसल, कम्युनिस्ट उस पक्ष या विचारधारा को कहते हैं जो लिंग, जाति, धर्म, संप्रदाय, वर्ग पर बंटे समाज को बदलकर आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक बराबरी की स्थिति में वास्तव में ला खड़े करे। दुनिया में इस विचार का गढ़ रूस और चीन को माना जाता है। भारत में वामपंथी विचारधारा का उदय प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् राजनैतिक एवं आर्थिक असमानताओं के कारण ही हुआ। बीसवीं सदी के दूसरे दशक के बाद भारत में एक शक्तिशाली वामपक्ष का उदय हुआ। आजादी के बाद वामपंथ आंदोलन को यहां के लोगों का समर्थन भी मिला। मंडल और कमंडल और निजीकरण व वैश्वीकरण के दौर में यह कमजोर पड़ गया। भारत में आज वामपंथ स्वीकार्य हो सकता है, अगर उनके नेता भारतीय सामाजिक—राजनीतिक मूल्यों के अनुरूप कम्युनिस्ट में परिवर्तन लाना स्वीकार करें। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। ऐसा इसलिए कि माक्र्स के साम्यवाद भी रूस और चीन में तब मूर्त रूप ले सका जब लेनिन, मुसोलिनी और माओ जेदोंग ने उसे अपने राजनीतिक-सामाजिक परिवेश के अनुरूप ढाल दिया।
कौन हैं तसलीमा?
तसलीमा नसरीन ( Taslima Nasreen ) बांग्लादेश ( Bangladesh ) की जानी-मानी लेखिका हैं। वह अपने नारीवादी विचारों से युक्त लेखों, उपन्यासों एवं इस्लाम एवं अन्य नारीद्वेषी मजहबों की आलोचना के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने 1990 के दशक की शुरुआत में अपने निबंधों और उपन्यासों के जरिए विश्य समुदाय को ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था। वो अब तक कई किताबें लिख चुकी हैं, वे कविताएं लिखती हैं और उनकी एक नॉवेल 'लज्जा' पर भारत में फिल्म भी बन चुकी है। इस फिल्म के बाद उनके खिलाफ फतवा जारी कर दिया गया था।
इस्लामिक कट्टरता के खिलाफ लिखने और बयानबाजी की वजह से वे मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर रहती हैं। यही वजह है कि बांग्लादेश से उन्हें निर्वासित होकर भारत में रहती हैं। हालांकि वे स्वीडन की नागरिक हैं लेकिन वे बार-बार अपना वीजा बढवाकर भारत में ही रहती हैं। वो साल 2004 से भारत में रह रही हैं। तसलीमा पेशे से एक डॉक्टर रही हैं, लेकिन बाद में वे लेखिका बन गई।
25 अगस्त 1962 में बांग्लादेश के मयमनसिंह में पैदा हुईं तसलीमा ने बांग्लादेश से ही चिकित्सा में डिग्री ली है। पहले वे यूरोप और अमेरिका में रहती थी। इस्लाम पर टिप्पणी करने की वजह से उन पर कई बार हमले की कोशिश हो चुकी हैं। वह चाहती हैं कि भारत में हर क्षेत्र में महिलाओं की मजबूत भागीदारी हो। अपने इंटरव्यू में वे कई बार अपने देश बांग्लादेश लौटने की बात करती हैं, लेकिन जान का खतरा होने की वजह से वो वहां नहीं जा पा रही हैं।