Sexual Harrasment: कपड़े के ऊपर से छूना भी यौन शोषण- SC, बांबे हाईकोर्ट के 'स्किन टू स्किन' टच के फैसले को किया खारिज
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Sexual Harrasment: यौन शोषण के एक मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि गलत नीयत से छूना भी यौन शोषण (Sexual Harrasment) की श्रेणी में आता है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज करते हुए कहा जिसमें कहा गया था कि किसी नाबालिग के ब्रेस्ट को कपड़े के ऊपर से पकड़ने या छूने को यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा। इसपर आज गुरुवार, 18 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कपड़े के ऊपर से गलत तरीके से छूना भी शारिरीक शोषण है। एससी ने कहा की यौन उत्पीड़न को "स्किन टू स्किन टच" तक सीमित करने से पॉक्सो कानून (POCSO Act) की बेहद संकीर्ण और बेहूदा व्याख्या निकलकर आएगी। इससे इस कानून का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा, जिसे हमने बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए लागू किया था।
कोर्ट अपने मुताबिक कानून न बनाएं- SC
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहने हुए कपड़ों या किसी अन्य कपड़े के ऊपर से बच्चे को गलत नीयत से छूना भी पॉक्सो एक्ट में आता है। कोर्ट को बांबे हाईकोर्ट के फैसले पर कहा कि कानून का सीधे-सरल शब्दों के गूढ़ अर्थ निकालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। ऐसी संकीर्ण और रूढ़िवादी व्याख्याओं से पोक्सो कानून को बनाने का मुख्य उद्देश्य विफल होगा, जिसकी हम इजाजत नहीं दे सकते।
क्या है पूरा मामला
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी नागपुर (Nagpur) की एक 12 साल की बच्ची से यौन शोषण के मामले में सुनवाई के दौरान की। 16 साल की नाबालिग किशोरी ने मामला दर्ज कराया था। पीड़िता के मुताबिक, दिसंबर 2016 में आरोपी सतीश (39 साल) उसे खाने का सामान देने के बहाने अपने घर ले गया था। वहां उसने बच्ची के ब्रेस्ट को छूने और निर्वस्त्र करने की कोशिश की थी। घटना के समय बच्ची की उम्र 12 साल थी। सेशन कोर्ट ने इस मामले में पॉक्सो एक्ट के तहत आरोपी को तीन साल की सजा और IPC की धारा 354 के तहत एक साल की सजा सुनाई थी। ये दोनों सजाएं एकसाथ चलनी थीं।
साल 2017 में 12 साल की बच्ची से यौन शोषण का ये मामला बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) पहुंचा। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने 12 जनवरी, 2017 को अपने आदेश में कहा कि 12 साल की बच्ची से यौन शौषण के ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं, जिससे साबित हो सके कि उसका टॉप उतारा गया या फिर स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट हुआ। इसलिए इस मामले को यौन शोषण की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने सेशन कोर्ट के फैसले में संशोधन करते हुए आरोपी को पॉक्सो एक्ट के तहत दी गई सजा से मुक्त कर दिया था।
वहीं, IPC की धारा 354 के तहत दी गई एक साल की कैद को बांबे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था। 27 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई थी, जिसमें आरोपी को POCSO Act से बरी किया गया था।