अर्णब गोस्वामी के मामले की CBI जांच का कपिल सिब्बल आखिर क्यों कर रहे विरोध?
अर्णब गोस्वामी के वकील हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अर्णब ने अपने कार्यक्रम में पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं। अगर पालघर की घटना पर टिप्पणी को जांच के लिए सीबीआई को ट्रांसफर किया जाता है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है....
जनज्वार ब्यूरो। रिपब्लिक टीवी के संपादक और संस्थापक अर्णब गोस्वामी के खिलाफ दायर एफआईआर पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। गोस्वामी के खिलाफ यह एफआईआर रजा ऐजुकेशनल वेलफेयर सोसायटी के इरफान अबुबकर शेख की ओर से दायर की गई है। एफआईआर में गोस्वामी पर मुंबई के बांद्रा में प्रवासियों के बीच सांप्रदायिकता भड़काने का आरोप लगाया गया है।
इस मामले की सुनवाई जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह के द्वारा की जा रही है। अर्णब की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे अपने तर्क रख रहे हैं। इस दौरान उन्होंने कहा कि कोई एक नई याचिका दायर की गई है, घटना 16 अप्रैल को टीवी पर एक शो की है। उनके शो के खिलाफ याचिकाकर्ता ने एफआईर दर्ज कराई है।
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साल्वे ने कहा, 'हमें इस मामले में अग्रिम जमानत की आवश्यकता है।' 25 अप्रैल को याचिकाकर्ता को पुलिस के समक्ष पूछताछ के लिए उपस्थित होने के लिए एक नोटिस दिया गया। एफआईआर की प्रकृति से पता चलता है कि यह एकतरफा छेड़छाड़ की टेक्टिक है। उन्होंने (मुंबई पुलिस) उससे 12 घंटे तक पूछताछ की है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक साल्वे ने कहा कि पब्लिक डोमेन में कुछ चिंताजनक ट्वीट (अर्णब गोस्वामी के खिलाफ) देखने को मिले हैं। जिनको जमा करते हुए उन्होंने कहा कि यह ऐसी खबर है जिसमें जनता शामिल है। यह खबर है जिसके बारे में जनता को पता होना चाहिए।
साल्वे ने आगे कहा, मैं यह देखकर हैरान हूं कि पुलिस उनसे पूछताछ कर रही है कि उन्होंने कुछ लोगों को बदनाम किया। पुलिस टेलीकास्ट की जांच कर रही है। इसके अलावा उनसे पूछताछ करने वाले दो अधिकारी कोविड-19 के संपर्क में थे और उनमें से एक का टेस्ट पॉजिटिव आया है।
इस पर जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा, इन सभी बिंदुओं को हाईकोर्ट के समक्ष रखा जा सकता है। अग्रिम जमानत या मामले में पूछताछ, जो भी आपको पसंद हो।
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इसके बाद साल्वे ने कहा, कृपया मेरी प्रार्थना पर विचार करें। यदि मैं एक एपिसोड का प्रसारण कर रहा हूं और इसमें कुछ महत्वपूर्ण मामले शामिल हैं तो मैं इसे प्रसारित करुंगा। सांप्रदायिक दंगे नहीं होते, इस तरह का कुछ भी नहीं है। साल्वे ने आगे कहा, कृपया अनुच्छेद 19 (1) (ए) पर विचार करें। यदि कोई टिप्पणी की जाती है जिससे सांप्रदायिक बदलाव आया हो तो क्या पुलिस और सीआरपीसी को टीवी, प्रिंट और लेखन में अपनी राय को रखने के लिए लागू किया जा सकता है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक साल्वे ने आगे कहा, 'अगर आप सीआरपीसी का तंत्र लागू करते हैं तो क्या पुलिस एक पत्रकार को गिरफ्तार कर सकती है?' इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'हमें दोनों के बीच संतुलन बनाना चाहिए। हम आपको बॉम्बे हाईकोर्ट ट्रांसफर करने की स्वतंत्रता दे सकते हैं, हमने पहले ही अंतरिम संरक्षण दे दिया था।'
बेंच ने कहा, 'यदि आप एफआईआर को रद्द कराना चाहते हैं तो बॉम्बे हाईकोर्ट को ट्रांसफर कर सकते हैं। एफआईआर की बहुलता के कारण हमने पहले ही कार्रवाई में हस्तक्षेप किया था।' जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'हम आपके दावे को खारिज नहीं करेंगे। यह सिर्फ याचिकाकर्ता के संबंध में नहीं है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई व्यक्ति उत्पीड़न के अधीन न हो और ऐसा वातावरण नहीं बनाना चाहिए जिसमें किसी को भी विशेष रुप से छूट दी गई है।'
बातचीत के क्रम में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, तो उससे (यदि जांच सीबीआई को ट्रांसफर हो जाती है) तो जांच आपके हाथों में चली जाएगी। इस पर साल्वे ने कहा सिब्बल का बयाना दर्शाता है कि मामले को सीबीआई को ट्रांसफर करने की आवश्यकता है। यह केंद्र और राज्य के बीच एक राजनीतिक समस्या है। मैं दोनो तरफ से चल रही फायरिंग में फंस गया हूं।
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अर्णब गोस्वामी की जांच को लेकर साल्वे ने सवाल किया, मुझे पुलिस द्वारा संपादकीय टीम और सामग्री का विवरण क्यों दिया गया? उनसे बार-बार कहा गया कि उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष को बदनाम किया। उनसे पूछा गया कि चैनल में किसका पैसा लगा है।
साल्वे ने कोर्ट को बताया, 'जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों ने जानना चाहा कि मेहमानों की सूची, समाचार एकत्र करने की प्रक्रियाओं का निर्णय कौन करता है। कंपनी के बारे में वित्तीय विवरण पूछे जा रहे थे, जिसमें इक्विटी और अन्य विवरण शामिल हैं।