CORONA अफवाहों के कारण सब्जी उगाने वाले मुस्लिम किसानों से दुकानदार नहीं कर रहे खरीददारी
मुस्लिम किसानों के पास ठेकेदार तो आ नहीं रहे हैं और अगर वह आस पास के गांव में सब्जी बेचने जाते हैं तो कोई उनकी सब्जी खरीदाता ही नहीं है। उन्हें भगा दिया जाता है। कई बार लोग मारपीट पर उतारू हो जाते हैं।...
मनोज ठाकुर की रिपोर्ट
जनज्वार: लॉकडाउन होने के बाद से जहां किसानों के सामने मुसीबतों का पहाड़ टूट गया है. लेकिन मुस्लिम किसानों का दावा है कि इस मुश्लिक वक्त में उनकी हालात ज्यादा खराब है. उनके मुताबिक मुसलमानों के खिलाफ फैलाई जा रही है अफवाहों की वजह से न तो ठेकेदार उनसे कुछ खरीद रहा है और न लोग.
पानीपत और यूपी के शामली जिले की सीमा के बीच यमुना नदी की रेती में सब्जी करने वाले मुस्ताक अहमद (26 साल) समझ नहीं पा रहे कि साहुकार का ढाई लाख का कर्ज वह इस बार कैसे चुकायेंगे? क्योंकि पहले लॉकडाउन ने सब्जी बिकने नहीं दी। अब मुसलमानों के प्रति जो अफवाहें चल रही है, उसके कारण सब्जी खरीदने के लिए ठेकेदार आ ही नहीं रहे हैं।
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संकट इतना गहरा गया कि मुस्ताक का परिवार के सामने रोटी तक का संकट आ गया है। विपरीत हालात का सामना करने वाला यह अकेला किसान नहीं हैं। इस तरह के 2389 किसान है, जो पारंपरिक तरीके से यमुना नदी की रेत में सब्जी की खेती करते हैं।
यहां प्रत्येक किसान हर रोज पांच हजार रुपये का नुकसान झेलने पर मजबूर हो रहा है। यहां 70 प्रतिशत किसान साहुकार से कर्ज लेकर खेती कर रहे हैं। इनका कहना है कि अब वह कैसे खरीददारों को सफाई दे कि उनकी सब्जी में कोई वायरस नहीं है।
किसान दिलनवाज ने बताया कि अप्रैल तक वह खेती पर हुई लागत निकाल लेते थे। इसके बाद दो से तीन माह वह इतना पैसा कमा लेते थे कि उनका अगले साल का खर्च निकल जाता था। दिलनवाज ने बताया कि उसके दादा यहीं काम करते थे, इसके बाद उसका पिता जुबैर खान ने भी यही काम किया और अब वह सब्जी की खेती का काम करता है।
सब्जी उत्पादक किसान यमुना की रेती हर साल ठेके पर लेते हैं। पचास से 70 हजार रुपए प्रति एकड़ ठेका लेते हैं। इतनी ही लागत सब्जी उगाने में आ जाती है। किसानों ने बताया कि वह आढ़ती से कर्ज लेकर ही सब्जी का काम करते हैं। जैसे जैसे सब्जी मंडी में जाती है, उसी हिसाब से पैसा कटता रहता है। यह क्रम सालों से चला आ रहा है।
इस बार जैसे ही फसल तैयार हुई, तो लॉकडाउन हो गया। किसानों ने बताया कि सब्जी को स्टोर तो कर नहीं सकते। इसलिए खेत की फसल सड़ गई।
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उन्होंने बताया, '80 प्रतशित सब्जी खेत में ही बिक जाती थी। क्योंकि आढ़ती का ठेकेदार नदी से ही सब्जी खरीद कर ले जाता था। जो थोड़ी बहुत बचती थी, वह वें खुद गांवों में फेरी लगा कर बेच दिया करते थे। लेकिन अब वह आस पास के गांव में सब्जी बेचने जाते हैं तो कोई उनकी सब्जी खरीदाता ही नहीं है। उन्हें भगा दिया जाता है। कई बार लोग मारपीट पर उतारू हो जाते हैं।'
मुस्ताक का कहना है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो भूखा मरने की नौबत आ जाएगी. मुस्ताक का कहना है कि वह कोई ओर काम भी नहीं करना नहीं जानता। उसे तो सिर्फ यहीं पता है कि सब्जी की खेती कैसे करनी है।