बलात्कार-हत्या के दोषी के कानूनी विकल्प पूरे होने तक जारी नहीं हो सकता डेथ वारंट, सुप्रीम कोर्ट
सूरत की अदालत ने बिहार के निवासी यादव पर 3 साल की बच्ची के बलात्कार के बाद हत्या मामले में पोस्को अधिनियम के तहत मौत की सजा सुनाई थी, जिसे गुजरात उच्च न्यायालय ने 27 दिसंबर 2019 को बरकरार रखा था और अब 3 साल की बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या मामले में फांसी पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है....
जेपी सिंह की रिपोर्ट
सूरत में तीन साल की बच्ची के बलात्कार और हत्या का मामले में उच्चतम न्यायालय ने दोषी को होने वाली फांसी पर रोक लगा दी है। सूरत कोर्ट द्वारा 29 फरवरी को फांसी देने का डेथ वारंट जारी किया गया था। अनिल सुरेंद्र यादव को फिलहाल फांसी नहीं होगी। यादव को अक्टूबर 2018 में मौत की सजा दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की खंडपीठ ने सूरत की पॉक्सो अदालत द्वारा जारी किये गये अनिल यादव के डेथ वारंट पर रोक लगा दी है। सुनवाई के दौरान दोषी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट द्वारा मौत की सजा की पुष्टि करने के बाद शीर्ष अदालत में अपील करने के लिए 60 दिनों का समय था, लेकिन इससे पहले ही डेथ वारंट जारी कर दिया गया।
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मासूम के बलात्कार और हत्या के दोषी अनिल यादव की वकील अपराजिता सिंह ने कहा कि सभी कानूनी उपचार समाप्त होने से पहले डेथ वारंट जारी नहीं किया जा सकता है। उच्चतम न्यायालय में अपील दायर करने के लिए यादव के पास 60 दिन का समय है और इससे पहले डेथ वारंट जारी नहीं किया जा सकता।
चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने इस बात से सहमति जताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद डेथ वारंट जारी किए जा रहे हैं, जिसमें कहा गया था कि सभी कानूनी उपचार समाप्त होने से पहले डेथ वारंट जारी नहीं किया जाएगा। जज इस तरह के आदेश कैसे पारित कर सकते हैं? न्यायिक प्रक्रिया इस तरह नहीं हो सकती।
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चीफ जस्टिस बोबडे ने सॉलिसिटर जनरल को मामले पर ध्यान देने के लिए कहा क्योंकि उच्चतम न्यायालय पहले मौत की सजा के मामलों की समय सीमा निर्धारित करने के लिए केंद्र की दलील की जांच करने के लिए सहमत हो गया है। दरअसल सूरत की अदालत ने बिहार के निवासी यादव को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोस्को) अधिनियम के तहत मौत की सजा सुनाई थी, जिसे गुजरात उच्च न्यायालय ने 27 दिसंबर 2019 को बरकरार रखा था।
गुरुवार 20 फरवरी को चीफ जस्टिस बोबडे की पीठ ने सूरत की पोक्सो अदालत द्वारा जारी डेथ वारंट पर रोक लगा दी।सुनवाई के दौरान दोषी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह ने पीठ को बताया कि हाईकोर्ट द्वारा मौत की सजा की पुष्टि करने के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 60 दिनों का समय था, लेकिन इससे पहले ही डेथ वारंट जारी कर दिया।
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इस पर चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा कि पहले ही उच्चतम न्यायालय का आदेश है कि डेथ वारंट तब तक जारी नहीं किया जा सकता जब तक कि दोषी सारे कानूनी उपचार पूरे ना कर ले। चीफ जस्टिस ने सवाल उठाया कि जज कैसे ऐसे आदेश जारी कर सकते हैं। न्यायिक प्रक्रिया इस तरह नहीं हो सकती। पीठ ने अदालत में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को इस मामले में ध्यान देने को कहा। दरअसल पीठ ने केंद्र सरकार की उस पीठ पर सुनवाई की सहमति जताई है जिसमें मौत की सजा के मामलों में समय-सीमा निर्धारित करने का अनुरोध किया गया है।
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इससे पहले 27 दिसंबर 2019 को गुजरात हाईकोर्ट ने पुष्टि कर दी थी। दोषी अनिल यादव ने अक्टूबर 2018 में सूरत तीन साल की बच्ची से बलात्कार किया था और फिर बाद में उसकी हत्या कर दी थी। अगस्त 2019 में सूरत के लिम्बायत क्षेत्र में साढ़े तीन साल की बच्ची से बलात्कार के बाद हत्या करने वाले को स्पेशल पोक्सो कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी। इस मामले में करीब नौ महीने सुनवाई चली थी, जिसके बाद दोषी को फांसी की सजा सुनाई गई। बच्ची के परिजनों ने बलात्कार के बाद हत्या करने वाले अनिल यादव को मृत्युदंड दिए जाने की मांग की थी।
गौरतलब है कि 14 अक्टूबर 2018 की शाम पीड़ित बच्ची अपने घर के पास खेल रही थी, तभी उसी बिल्डिंग में रहने वाला 20 वर्षीय अनिल यादव बहला-फुसलाकर बच्ची को उठा ले गया। वह उसे अपने कमरे में ले गया जहां मासूम के साथ बलात्कार किया और उसके बाद उसकी हत्या कर दी। लाश को प्लास्टिक बैग में डालकर एक ड्रम में छिपा दिया। पकड़े जाने के डर से वह 15 अक्टूबर को अपने कमरे पर ताला लगाकर फरार हो गया।
पुलिस ने जांच-पड़ताल शुरू की तो पता चला कि अनिल बिहार में है। पुलिस वहां गई और उसके मूल निवास से उसे गिरफ्तार किया। विशेष जांच टीम ने सिर्फ एक महीने में उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट उसे दोषी करार दिया था और फिर मौत की सजा सुनाई।