त्रिवेंद्र रावत बोले ठंड की वजह से गैरसैंण में नहीं चलेगी विधानसभा, विरोध में उपवास पर बैठे हरीश रावत को 3 घंटे में लगी ठंड
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने कहा ठंड की वजह से गैरसैण में नहीं करवाएंगे शीतकालीन सत्र, विरोध में हरीश रावत ने तीन घंटे के 'उपवास' पर बैठे...
जगमोहन रौतेला, वरिष्ठ पत्रकार, उत्तराखंड
भराड़ीसैंण (गैरसैंण) में भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश सरकार द्वारा विधानसभा का शीतकालीन सत्र न करवा कर 4 दिसम्बर 2019 से देहरादून में विधानसभा का सत्र करवाया जा रहा है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत द्वारा इसका कारण वहां अत्यधिक ठंड होना बताया गया और नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा ह्रदयेश ने भी मुख्यमंत्री की बात का समर्थन करते हुए देहरादून में शीतकालीन सत्र कराने पर सरकार का समर्थन किया। भराड़ीसैंण (गैरसैंण) में विधानसभा का शीतकालीन सत्र न कराए जाने के विरोध में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने 4 दिसम्बर 2019 को गैरसैंण के रामलीला मैदान में 'तीन घंटे' का उपवास किया।
इस कथित उपवास में उनके साथ कांग्रेस के अनेक बड़े नेता शामिल हुए जिनमें पूर्व विधायक व महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष सरिता आर्य, पूर्व विधायक गणेश गोदियाल, डॉ. जीतराम, मदन बिष्ट, ललित फर्स्वाण, मनोज तिवारी, डॉ. अनुसूया प्रसाद मैखुरी, पूर्व मंत्री राजेन्द्र भण्डारी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष खण्ड़ूड़ी, किरन बिष्ट, सुरेन्द्र बिष्ट, पृथ्वीपाल चौहान, भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) के प्रदेश अध्यक्ष मोहन भण्डारी, युवक कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्षमित सुभुल्लर, कांग्रेस सेवादल के प्रदेश उपाध्यक्ष रमेश गोस्वामी आदि अनेक नेता शामिल हुए।
संबंधित खबर : पहली बार मातम दिवस के रूप में मना 19 साल के उत्तराखंड का स्थापना दिवस
कभी हल्द्वानी में 200 मीटर की पदयात्रा तो अब गैरसैंण में तीन घंटे का उपवास। लगता है कि हरीश रावत ने सत्ता से बाहर हो जाने पर भी जनता व मुद्दों से छल करना नहीं छोड़ा। उनकी इन्हीं हरकतों से पता चलता है कि ये छद्म लड़ाईयां जनता के लिए नहीं, बल्कि अपना राजनैतिक अस्तित्व बचाने और कांग्रेस में अपनी धड़ेबाजी को मजबूत करने के लिए हैं और कुछ नहीं। जनता को मूर्ख समझने का खामियाजा 2017 विधानसभा चुनाव और 2019 लोकसभा चुनाव में भुगत चुके हैं, तब भी भरेब, राजनीतिक चालबाजियों, प्रपंच से बाज नहीं आ रहे हैं।
हरीश रावत जी तीन घंटे का उपवास नहीं, धरना होता है। लगता है कि गैरसैंण की 'ठंड' से आप भी डर गए जितनी देर आप 'उपवास' में गैरसैंण में अपनी पार्टी के समर्थक नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ बैठे, उतनी देर में तो अगर आप गैरसैंण में जनसम्पर्क करते तो वह भी पूरा नहीं होता। उसमें भी चार - पांच घंटे से ज्यादा लग जाते। तीन घंटे के लिए किसी एक निश्चित स्थान पर बैठे रहना 'उपवास' करना है तो पहाड़ के सैकड़ों लोग हर रोज सड़क किनारे 'उपवास' करते हैं, जब उन्हें कहीं जाने के लिए घंटों बस, जीप नहीं मिलती। राज्य में हर रोज सैकड़ों लोग तब भी 'उपवास' में होते हैं, जब वे अस्पतालों, क्लिनिकों में डॉक्टर को दिखाने के इंतजार में चार - पांच - छह घंटे तक बिता देते हैं।
आपका यह 'उपवास' तो गांधीवाद का भी घोर अपमान है। गांधी जी कई - कई दिनों तक नींबू - शहद - पानी के साथ उपवास पर रहते थे। उन्होंने अपने इस तरह के कार्यक्रमों को भी इसी वजह से कभी भी अनशन का नाम नहीं दिया। वे सरकार (अंग्रेजी सरकार) का विरोध करते हुए भी कहते थे कि मैं अपने अन्त:करण की शुद्धि और मन की शान्ति के लिए उपवास करता हूँ। गांधी जी उपवास के दौरान अपने विरोधी (अंग्रेज सरकार) के खिलाफ भाषण नहीं देते थे, बल्कि उस दौरान लिखने - पढ़ने का कार्य और ज्यादा करते थे।
कांग्रेस व इस पार्टी में राजनीति करने वाले लोग गांधी जी पर अपना कॉपीराइट मानते हैं। किन्हीं और लोगों का गांधी जी पर बात करना कांग्रेस को कभी भाया नहीं। इसी वजह से सच्चे गांधीवादियों से भी कॉग्रेस व उसकी सरकारों को हमेशा चिढ़ रही। यह वर्ष गांधी जी की 150वीं जयन्ती का भी वर्ष है। कम से कम इस साल तो 'तीन घंटे का उपवास' कर के गांधी जी के उपवास की धज्जियां उड़ाने व उसका मजाक बनाने जैसा कार्य 'अनजाने' में ही सही, नहीं करते।
संबंधित खबर : फीस बढ़ोत्तरी को लेकर प्रदर्शन कर रहे पतंजलि कॉलेज के छात्रों को बालकृष्ण ने धमकाया-पिटवाया, कहा तुमसे मैं सवा 3 लाख रुपये वसूलूंगा कोर्ट के जरिए
वैसे आपकी अपनी पार्टी के 'उत्तराखण्ड के गांधी' भी आपके पक्के समर्थक हैं? क्या उन्होंने भी आपको 'उपवास' व धरने में अन्तर नहीं बताया? ये कैसे 'गॉधी' हैं आपकी पार्टी के? जिन्हें यह तक नहीं पता कि 'उपवास' होता क्या है ? इससे साफ होता है कि कितने छद्म वाले हैं आपके संगी - साथी और आपकी पार्टी के उत्तराखण्ड के गांधी ? ऐसे लोगों को 'उत्तराखण्ड का गांधी' कहकर पुरी दुनिया के लिए आदर्श बन चुके 'महात्मा गांधी' का अपमान तो कम से कम न करना।
यह तो भोजन लेने की प्रक्रिया का भी मजाक ही बनाना है। कौन व्यक्ति है जो हर पल कुछ न कुछ खाते हुए चपर - चपर करता रहता है? चिकित्सा विज्ञान भी सही पाचन के लिए एक बार खाना खाने के बाद कम से कम छह घंटे बाद ही खाना खाने को कहता है। इतनी जल्दी तो मधुमेह के रोगी भी खाना नहीं खाते हैं जिन्हें थोड़ा - थोड़ा और जल्दी खाने की सलाह डॉक्टर देते हैं। सवेरे आठ बजे नाश्ता करने के बाद दोपहर का भोजन भी लोग लगभग एक- दो बजे के बीच ही दोपहर में करते हैं। तो क्या ऐसे सभी लोग हर रोज पांच घंटे का उपवास करते हैं? माननीय पूर्व मुख्यमंत्री रावत जी अगर ऐसा है तो हर व्यक्ति हर रोज दिन में दो बार उपवास करता है। एक सवेरे नाश्ता कर लेने के बाद दोपहर के भोजन तक और फिर दोपहर का भोजन कर लेने के बाद रात्रि का भोजन करने तक।
संबंधित खबर : अब उत्तराखंड में हुई मॉब लिंचिंग की कोशिश, प्रेमिका से मिलने पहुंचे कश्मीरी युवक को ग्रामीणों ने जमकर पीटा
इस मामले में मीडिया का बचकानापन भी सामने आया है जिसने बड़े महत्व के साथ इस धरने को 'उपवास' कह कर प्रकाशित और प्रसारित किया। किसी ने हरीश रावत जी के इस राजनीतिक 'उपवास' पर न तो कोई सवाल उठाया और उनसे इस बारे में सवाल पूछा। ये कौन सी पत्रकारिता कर रहे हो भाई? सत्ताओं के साथ बने रहना और उससे सवाल न करना तो थोड़ी देर के लिए अब समझ भी आ जाता है, क्योंकि उससे कई काम करवाने भी होते हैं। लेकिन अगर नेताओं से भी सवाल नहीं करोगे तो 'पत्रकारिता' कैसे होगी?
तीन घंटे का 'उपवास' करने की खबर तो अखबारों के हर संस्करण में है, लेकिन उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के नेता त्रिवेन्द्र पंवार द्वारा 4 दिसम्बर 2019 को ही अपने साथियों के साथ भराड़ीसैंण (जहां विधानसभा भवन बना हैं) में 24 घंटे के 'उपवास' की खबर स्थानीय स्तर पर ही अखबारों ने प्रकाशित कर के निपटा दी है। राज्य के दूसरों संस्करणों से यह खबर पूरी तरह से 'गायब' कर दी गई है। ऐसा क्यों? शायद मीडिया के लिए भी कार्यक्रमों व आन्दोलनों का महत्व नहीं है, बल्कि उसके लिए महत्वपूर्ण 'नेता' हो गये हैं। पूर्व मुख्यमंत्री का 'तीन घंटे का उपवास' महत्वपूर्ण है, बजाय कि एक क्षेत्रीय पार्टी के 24 घंटे के उपवास से। मु्दा जबकि दोनों का एक ही था। उत्तराखंड क्रांति दल नेता तो गैरसैंण को राजधानी घोषित करने की भी मॉग कर रहे थे। बेशक 'पूर्व मुख्यमंत्री' पद नाम बड़ा है। मीडिया का इस पद - नाम के प्रति आकर्षित होना सम्भव है, लेकिन क्या आप दूसरे संगठन के कार्यक्रम को बिल्कुल भी नजरअंदाज कर देंगे ?