Begin typing your search above and press return to search.
हाशिये का समाज

बेटी सुनैना के इंतजार में आदिवासी मां-बाप की पथरा गईं आंखें, 2 साल से कोई थाह-पता नहीं

Janjwar Desk
12 Sep 2021 4:59 PM GMT
बेटी सुनैना के इंतजार में आदिवासी मां-बाप की पथरा गईं आंखें, 2 साल से कोई थाह-पता नहीं
x

(माता-पिता की सुनैना से 2 साल से टेलीफोनिक बात भी नहीं कराई गई है)

मनोज की पत्नी सुशान्ति लड़कियों को घरों में काम पर लगाती है, जब उससे बात हुई तो वह कहती रही कि बेटी से बात करा देंगे लेकिन आज तक बात नही करवाई गई..

विशद कुमार की रिपोर्ट

जनज्वार। झारखंड का लातेहार जिला अंतर्गत महुआडांड़ प्रखंड के दूरूप पंचायत का छेगराही गांव के आदिवासी (tribal) सुरेश ठिठियो (35 वर्षीय) दो साल से इंतजार कर रहे हैं अपनी बेटी सुनैना कुमारी (14 वर्षीया) का जो दो साल पहले 6ठी कक्षा में पड़ती थी। दो साल पहले सागर नामक एक आदमी सुनैना को यह कहकर ले गया था कि उसे वह अपने घर में रखेगा और उसकी पढ़ाई लिखाई भी करवाएगा।

लेकिन दो साल हो गए, सागर न तो सुनैना (Sunaina) के बारे में कुछ बताता है और न ही उससे टेलिफोनिक बात ही करवाता है। सुनैना किस हाल में है? कैसी है? कहां है? इसकी कोई भी जानकारी उसके पिता सुरेश ठिठियो को नहीं है।

काम सिखाने और पढ़ाई के नाम पर ले गया सुनैना को

बता दें कि सुरेश ठिठियो (Suresh Thithio) और उसकी पत्नी सुमित्रा देवी मजदूरी (labouring) करके अपना और अपने पांच बच्चों का पेट पालते हैं। दो साल पहले सागर नामक एक आदमी अपनी पत्नी के साथ सुरेश ठिठियो का पड़ोसी बालेश्वर मुण्डा के घर आया और वहां एक महीने तक रहा। इस बीच वह और उसकी पत्नी ने सुरेश ठिठियो और उसके परिवार से काफी मधुर रिश्ता बना लिया और सुरेश की बड़ी बेटी सुनैना की पढ़ाई (study) कैसे होगी, यह चिंता जाहिर करते हुए कहा कि उसे वह अपने घर ले जाएगा, जहां सुनैना घर के काम-काज को ठीक सीख लेगी और हमारे बच्चे की देख-भाल के साथ साथ पड़ाई भी कर लेगी, तब उसे वह कोई अच्छी नौकरी भी दिलवा देगा।

सागर के दिखाए इस दिवा स्वप्न (daylight dreams) के झांसे में आकर सुरेश ठिठियो ने अपनी बेटी को सागर व उसकी पत्नी के साथ भेज दिया। सुरेश ठिठियो बताता है कि कुछ दिन बाद हम बेटी से मिलने के लिए सागर को फोन किया तो उसने बताया उसकी बेटी उसके एक दोस्त मनोज के पास है और ठीक ठाक है। जब सुरेश ने कहा कि उससे बात करवाइए, तो सागर बात करवाने का आश्वासन (promise) देता रहा। ऐसा करते दो साल बीत गए हैं, लेकिन सुरेश का उसकी बेटी से न तो बात करवाया गया है, न ही उसकी जानकारी दी गई है कि वह कहां और किस हाल में है?

बेटी से मां-पिता की बात भी नहीं कराते

सुरेश ठिठियो बताते हैं कि लोगों से पता चला है कि मनोज की पत्नी सुशान्ति जो लड़कियों (girls) को घरों में काम पर लगाती है। जब उससे बात हुई तो वह कहती रही कि बेटी से बात करा देंगे। लेकिन आज तक बात नही करवाई गई। बताते चलें कि महुआडांड़ प्रखंड (Maryada block) के अतिसूदूर क्षेत्रों में जनजातिय (आदिवासियों) की संख्या अधिक है।

वहीं इन क्षेत्रों में बाल तस्करी (child trafficking) और रोजगार के लिए पलायन की समस्या आम हैं। क्षेत्र में गरीबी एवं काम का घोर अभाव के कारण मजदूर पलायन कर दिल्ली, केरल, उतर प्रदेश जैसे राज्य जाते हैं। इनकी मजबूरी का फायदा दलाल असानी से उठाते है। पैसे का लालच देकर परिवार को ठग फुसलाकर नाबालिग बच्चियों को ले जाकर बेच देते हैं।

अब पुलिस में की है शिकायत

आखिरकार सुरेश ठिठियो जब इसकी शिकायत लेकर महुआडांड़ पुलिस स्टेशन (police station) गया तो वहां बताया गया कि उसका थाना नेतरहाट है अत: इसकी शिकायत वहां करे। जब वह इसकी शिकायत लेकर नेतरहाट पुलिस स्टेशन गया तो वहां थाना प्रभारी ने कहा कि इस मामले को लेकर वह डीएसपी महुआडांड़ से मिले।

तब उन्होंने 8 सितंबर को इसकी शिकायत महुआडांड़ डीएसपी से की। डीएसपी (DSP) ने मामले को गंभीरता से लेते हुए सागर और मनोज से टेलिफोनिक बात की और कहा कि दस दिन के भीतर वे सुरेश की बेटी सुनैना को लाकर नहीं देते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी और गिरफ्तार किया जाएगा।

पलायन और बंधुआ मजदूरी बनी नियति

बताते चलेें कि झारखंड (Jharkhand) में बेरोजगारी का आलम यह है कि रोजगार की तलाश में राज्य से बाहर गये आदिवासी दूसरे राज्यों में जाकर बंधुआ मजदूर बने रहने को मजबूर हो जाते हैं, तो दूसरी तरफ आदिवासी लड़कियां मानव तस्करों के गिरफ्त में फंसकर कई तरह की प्रताड़ना का शिकार होने को अभिशप्त हैं।

उल्लेखनीय है कि लोहरदगा (Lohardagga) जिले के भंडरा थाना व प्रखंड के अंतर्गत मसमोना गांव की रहने वाली 32 वर्षीय एतवरिया उरांव को राज्य सरकार व जिला प्रशासन की पहल पर 12 वर्षों बाद नेपाल (Nepal) के काठमांडू से पिछले 5 सितंबर 2021 को लोहरदगा उसके गांव लाया गया। बेटी के लौटने की खुशी मां धनिया उरांव व उसके स्वजनों सहित गांव वालों में भी देखने को मिली, जो शब्दो में बयान नहीं किया जा सकता।

सरकारी सूत्र बताते हैं कि 12 वर्ष पूर्व एतवरिया उरांव अपने पिता बिरसू उरांव के साथ यूपी के गोरखपुर में ईंट भट्ठे में काम करने गई थी। इसी दौरान किसी ने बहला फुसलाकर एतवरिया को पहले यूपी से हरियाणा (Haryana) ले गया था, जहां से फिर उसे नेपाल भेज दिया गया। जबकि एतवरिया बताती है कि उसे गांव की ही एक महिला ले गई थी। जिसका नाम भी और ठीक से पहचान भी उसे याद नहीं है।

कई आदिवासी लोग अब भी हैं लापता

बता दें कि है कि इसी गांव का ही लुटूवा उरांव, पिता गोना उरांव 20 साल से लापता हैं। बिसु उरांव की बेटी लगभग 9-10 साल से लापता है। गन्दुर महतो का बेटा 1 साल से लापता है। माडो उरांव, पिता सुखू उरांव 6 माह से लापता है। वे कहां हैं? किस हाल में हैं? जिसकी कोई जानकारी घर वालों को नहीं है। ऐसे कई मामले हैं, जो इस बात के सबूत हैं कि आदिवासी विकास के नाम पर बना झारखंड अलग राज्य और एकीकृत बिहार (Unite Bihar) के राजनैतिक चरित्र में आज तक कोई बदलाव नहीं आया है।

वहीं गुमला जिला (Gumla district) व प्रखंड के फोरी गांव निवासी 60 वर्षीय फुचा राम महली (आदिवासी) को 30 वर्षों बाद 3 सितंबर 2021 को अंडमान निकोबार से लाया गया। वे 30 साल तक वहां बंधुआ रहे। फुचा महली 30 साल पहले काम की तलाश में अंडमान गए थे।

15 लाख आदिवासी-दलित हर साल करते हैं पलायन

सूत्र बताते हैं कि राज्य से करीब 15 लाख आदिवासी व दलित सामुदाय (Tribal and Dalit community) के लोग देश के विभिन्न शहरों में मजबूरी वश हर साल पलायन करते हैं, उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। वहीं पलायन करने वालों के परिजन अपनो का आने का इंतजार करते रहते हैं। वे इसकी शिकायत पुलिस को भी नहीं करते, क्योंकि प्रायः पुलिस उन्हें डांट-फटकार या समझा-बुझाकर बिना उनकी शिकायत दर्ज किए वापस लौटा देती हैं कि जाओ आ जाएंगे।

कभी कभी ऐसा होता है जब कोई मानव तस्कर (human traffickers) पुलिस के हत्थे चढ़ जाता है। बता दें कि पिछले 9 सितंबर को लातेहार के महुआडांड़ थाना क्षेत्र से काम दिलाने के बहाने नाबालिग आदिवासी बच्चियों को बहला-फुसलाकर दिल्ली ले जा रहे दो लोगो को महुआडांड़ थाना पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।

कई बार मानव तस्करों की होती है गिरफ्तारी भी

इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए एसडीपीओ राजेश कुजूर ने बताया कि ग्रामीणों ने बुधवार को थाना प्रभारी आशुतोष यादव को सूचना दी थी कि पांच नाबालिग आदिवासी लड़कियों को बाल श्रम कराने के लिए दिल्ली ले जाया जा रहा है। जिसपर त्वरित कार्रवाई करते हुए एसडीपीओ राजेश कुजूर के निर्देशानुसार थाना प्रभारी के नेतृत्व में टीम गठित कर डाल्टनगंज के बस स्टैंड से कमर मुंडा, पिता हरण मुंडा, ग्राम नवाटोली, थाना बारेसांड एवं खुशबु कुमारी, पति राजू राम पल्हेया, थाना मनिका को हिरासत में लेकर पूछताछ की गयी, साथ ही इनके साथ गई पांच नाबालिग बच्चियों को भी मुक्त कराया गया।

पूछताछ के दौरान दोनों आरोपियों ने अपना अपराध स्वीकार किया एवं चंदन ट्रैवेल्स बस से दिल्ली (Delhi) जाने की बात बताई। वहीं दोनों के पास से पुलिस ने दो मोबाइल फोन एवं दिल्ली जाने की सात टिकट भी बरामद कर ली। मुक्त कराई गई 2 नाबालिग महुआडांड़ थाना क्षेत्र अंतर्गत नगर प्रतापपुर, 2 नाबालिग नेतरहाट थाना क्षेत्र अंतर्गत डांड़ कापू एवं छगराही एवं एक नाबालिग छतीसगढ़ निवासी है। सभी मुक्त कराई गई नाबालिग बच्चियों को बाल कल्याण समिति को सौंप दिया गया।

Next Story

विविध