11 दिन से गुजरात में भूख हड़ताल पर बैठे दिव्यांग बोले 'विकलांगों का नाम दिव्यांग कर देने से नहीं भरता पेट, हमें चाहिए रोजगार'
भूख हड़ताल पर बैठे दिव्यांगों ने कहा, पूरे देश में गुजरात मॉडल का ढिंढोरा पीट सत्ता में आई मोदी सरकार को भी लिख चुके हैं अपनी मांगों को लेकर कई पत्र, मगर प्रधानमंत्री की तरफ से नहीं मिला कोई आश्वासन और मदद इसलिए अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं हम, भूखों मरने की हालत में जी रहे हैं इसलिए चाहिए रोजगार...
कच्छ से दत्तेश भावसार की रिपोर्ट
जनज्वार। प्रधानमंत्री मोदी के गृहराज्य गुजरात जिसे गाहे-बगाहे गुजरात मॉडल के बतौर प्रचारित—प्रसारित किया जाता है, के दिव्यांग पिछले 11 दिनों यानी 20 जनवरी से अनशनरत हैं। आंदोलन का कारण है सरकार से रोजगार की मांग। पढ़े—लिखे होने के बावजूद शासन—प्रशासन द्वारा उनकी उपेक्षा की जा रही है। कई बार स्थानीय समेत पीएमओ को पत्र भेजने के बावजूद कोई उनकी मांगों की तरफ ध्यान नहीं दे रहा। अनशनरत दिव्यांगों का कहना है कि अगर हमारी मांगों की तरफ ध्यान नहीं दिया गया तो हम दिल्ली आकर आंदोलन करने को बाध्य होंगे।
गौरतलब है कि गुजरात के कच्छ जनपद के दिव्यांग अपनी उपेक्षा और नौकरी के उचित मौके ना मिलने के कारण अपनी जिंदगी बहुत मुश्किल से गुजर बसर कर रहे हैं। दिव्यांगों को योग्य सहायता न मिलने के कारण वो मरने की स्थिति में जी रहे हैं। ऐसे ही कई दिव्यांगों ने कच्छ जिला कलेक्टर कचहरी के सामने पिछले 11 दिनों से धरना आंदोलन शुरू किया हुआ है।
यह भी पढ़ें : गुजरात नरसंहार के 14 अपराधियों को सुप्रीम कोर्ट से जमानत, मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुआ था यह अपराध
भूख हड़ताल के 11 दिन बीत जाने के बावजूद अब तक शासन—प्रशासन ने दिव्यांगों की कोई सुध नहीं ली है, जिस कारण दिव्यांग अपने आप को बहुत उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। दिव्यांगों की लड़ाई में कच्छ जिला कांग्रेस का साथ मिला है, जिसने दिव्यांगों के लिए जिला कलेक्टर को ज्ञापन देकर नौकरी और पेंशन बढ़ाने की मांग की है।
इस आंदोलन में शामिल कई दिव्यांगों से बात करने पर उन्होंने बताया कि उन्हें सरकारी नौकरियों में 4% और निजी औद्योगिक कंपनियों में 1% दिव्यांगों आरक्षण मिला हुआ है, मगर सरकारी तो छोड़िये प्राइवेट औद्योगिक कंपनियों तक में हमें कोई नौकरी नहीं दे रहा। हम पिछले साल से अब तक 4 बार शासन—प्रशासन को ज्ञापन सौंप चुके हैं, मगर कोई सुनवाई नहीं हुई।
यह भी पढ़ें : गुजरात सेंट्रल यूनिवर्सिटी में लेफ्ट मोर्चा की ऐतिहासिक जीत, एबीवीपी का हुआ सूपड़ा साफ
बकौल आंदोलन कर रहे दिव्यांगों के उन्होंने 20/06/ 2019, 9/9/2019, 30/12/2019 और उसके बाद अब इस साल 20/01/ 2020 को कच्छ जिला कलेक्टर को ज्ञापन देकर अपनी समस्याओं से अवगत कराया है, मगर जिला प्रशासन और राज्य सरकार की तरफ से अभी तक किसी भी दिव्यांग के साथ न्याय नहीं किया गया। इसीलिए हमने 20 जनवरी से कच्छ जिला कलेक्टर कचहरी के सामने अनशन—धरना शुरू किया है। इस धरने में लगभग 50 दिव्यांग शामिल हैं।
दिव्यांग आंदोलनकारियों में शामिल 37 वर्षीय नेत्रहीन खीमजी नारायण भाई कोठारा अबड़ासा के रहने वाले हैं। 12वीं कक्षा तक पढ़े हैं और संगीत में विशारद की उपाधि प्राप्त चुके हैं, किंतु फिर भी वह बेरोजगार हैं। खीमजी भाई संगीत में विाशरद होने के बाद भी बेरोजगार हैं, उनका गुजारा और रहना खाना पीना सब उनके भाई कर रहे हैं, जोकि खुद एक मजदूर है। खीमजी भाई कहते हैं, इतना पढ़ा-लिखा होने के बावजूद भी कोई काम नहीं कर पा रहा, क्योंकि मैं जन्म से नेत्रहीन हूं। हमारे जैसे लोगों के लिए कई जगह पर संगीत शिक्षक की नौकरियां हैं, परंतु उन रिक्त पदों पर गुजरात सरकार भर्ती नहीं कर ही है, इसीलिए खीमजी भाई बेरोजगार हैं। खीमजी भाई कहते हैं, मैंने अमरेली सरकारी ब्लाइंड पाठशाला में 8 साल बिताकर 12वीं तक का अभ्यास प्राप्त किया और विशारद की डिग्री भी प्राप्त की, बावजूद इसके मैं बेरोजगार हूं।
संबंधित खबर: गुजरात विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में एबीवीपी का हुआ सफाया
धरने पर बैठे अन्य एक दिव्यांग महेश्वरी भायाजी धनजी हैं, जिनकी उम्र 38 साल है। वह गांधीधाम में रहते हैं और उन्होंने BA, MSW, LLB और ITI जैसी तमाम डिग्रियां हासिल की हैं, बावजूद इसके इनको न ही सरकारी नौकरी मिल पायी और न ही प्राइवेट कंपनियों में कोई काम मिल पाया। भायाजी भाई जन्म से ही 85 % विकलांग हैं, उनके दोनों पांव पोलियो की वजह से बेकार हो चुके हैं।
धरने में बैठे 51 वर्षीय सिद्दीक जुसा कोली अबडासा के रहने वाले हैं। उन्होंने चौथी कक्षा तक पढ़ाई की और पांचवी कक्षा में उनकी नजर कमजोर होने के कारण वह ब्लाइंड हो गये जिस कारण उनको शिक्षा बीच में ही छोड़नी पड़ी। आज उनके योग्य रोजगार न मिलने के कारण वह पूरी तरह अपने भाई पर आश्रित हैं।
गांधीधाम के ही महेश्वरी तेजा करमशी जो 42 साल के हैं उन्होंने अंग्रेजी में बीए किया है, मगर वे भी बेरोजगार हैं। जन्म से ब्लाइंड महेश्वरी तेजा ने ब्रेनलिपी में BA किया है। रोजगार के सवाल पर कहते हैं शासन—प्रशासन कोई हमारी तरफ ध्यान नहीं देता, सरकार सिर्फ दावे और वादे करना जानती है।
यह भी पढ़ें : गुजरात की कच्छ यूनिवर्सिटी में 1 साल से नहीं कोई वीसी, तो 10 साल से रजिस्ट्रार का पद पड़ा है खाली
वहीं अनशनत 30 वर्षीय राजेश महेश्वरी टप्पर मुंद्रा के रहने वाले हैं। गैंग्रीन की वजह से 13 साल की उम्र में उनके पांव को काटना पड़ा था। उन्होंने PTC किया हुआ है, बावजूद इसके आज तक वह बेरोजगार हैं।
धरने में ही शामिल हैं 60 वर्षीय चंदा जी, जो कि भद्रेश्वर के रहने वाले हैं। सामाजिक कार्यकर्ता और विकलांग जीवन विकास मंडल के स्थापक ट्रस्टी चंदा जी ने अपनी पूरी उम्र विकलांगों की लड़ाई लड़ने में गुजार दी है। वे कहते हैं वह यह लड़ाई इसलिए लड़ रहे हैं ताकि उनकी आने वाली पीढ़ियों को न्याय मिल पाये।
अपनी मांगों को लेकर कलेक्ट्रेट के सामने बैठे विकलांग कहते हैं, विकलांग का नाम दिव्यांग भर कर देने से दिव्यांगों का पेट नहीं भरता। उनके लिए काम के अवसर पैदा करने से उनका भला होगा। हम दिव्यांग किसी से भीख नहीं मांगते, सिर्फ हमें काम दिया जाए, ताकि हम भी अपना पसीना बहाकर कमाई करें और देश के विकास में योगदान दे सकें।
धरनारत दिव्यांगों की मांग है कि कच्छ जिले के सारे दिव्यांगों की सूची बनाकर उनको BPL में समाविष्ट किया जाए, 40% से ज्यादा दिव्यांगों को सरकारी योजनाओं का विशेष लाभ दिया जाए तथा प्राइवेट कंपनियों में स्किल्ड और अनस्किल्ड दिव्यांगों को काम दिया जाए। दिव्यांग कहते हैं, गुजरात सरकार सिर्फ ₹600 पेंशन दे रही है, जबकि देश के कई राज्यों में 3000 से 4000 रुपए तक पेंशन दिव्यांगों को दी जाती है। हर माह दिव्यांगों को 600 रुपये की पेंशन ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।
दिव्यांगों की मांग है कि उनको रहने के लिए सरकार की तरफ से प्लॉट अलॉट किये जायें। पूरे जिले में सर्वे कराकर दिव्यांगों की संख्या अनुसार कोई खास योजना बनाई जाए, जिनमें सारे दिव्यांगों का समाविष्ट किया जा सके। उनकी मांग है कि केंद्र सरकार की आयुष्मान योजना के तहत सारे विकलांगों को आयुष्मान कार्ड दिया जाए और गुजरात सरकार खासकर दिव्यांगों को मिलने वाली पेंशन राशि को ₹600 से बढ़ाकर ₹5000 करे, ताकि इस महंगाई में दिव्यांग अपना और अपने परिवार का गुजारा कर सकें।
कच्छ जिला कांग्रेस प्रमुख यजुवेंद्र सिंह जाडेजा ने जिला कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन कि दिव्यांगों की नियुक्तियां सिर्फ कागजों पर न होकर हो हकीकत में
दिव्यांग कहते हैं, कच्छ जिले में तकरीबन 350 औद्योगिक कंपनियां हैं, जिन कंपनियों को 1% दिव्यांग आरक्षण करना चाहिए, मगर वह कंपनियां दिव्यांगों को नौकरियां नहीं दे रहीं। एक आंकड़े के अनुसार कच्छ जनपद में 300 से 400 दिव्यांग हैं। इनमें से हर एक को अगर एक कंपनी भी नौकरी पर रखे तो कच्छ जिले में दिव्यांगों की समस्या ही खत्म हो जाएगी।
दिव्यांगों ने चेतावनी दी है कि अगर शासन—प्रशासन ने हमारी मांगों को अनसुना किया तो वे गुजरात के कच्छ जिले से दिल्ली तक की पदयात्रा कर एक बड़ा आंदोलन करेंगे। पूरे देश में गुजरात मॉडल का ढिंढोरा पीटकर सत्ता में आई मोदी सरकार को भी दिव्यांगों ने कई पत्र लिखे हैं, परंतु प्रधानमंत्री की तरफ से या उनके कार्यालय की तरफ से कोई आश्वासन या किसी तरह की मदद उन्हें नहीं दी गयी, इसलिए दिव्यांग अपने आप को छला सा महसूस कर रहे हैं।
सारे दिव्यांगों को साथ लेकर कच्छ जिला कांग्रेस प्रमुख यजुवेंद्र सिंह जाडेजा ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंप मांग की है कि दिव्यांगों की नियुक्तियां सिर्फ कागजों पर होती हैं, इसलिए नियमों के अनुसार खानापूर्ति के लिए दिव्यांगों को नौकरियां मिल जाती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कच्छ के दिव्यांगों को प्राइवेट कंपनियां नौकरियां नहीं देती। इसीलिए पिछले 11 दिन से दिव्यांगों को आंदोलन करने की जरूरत पड़ी है, अगर हर एक कंपनी एक एक दिव्यांग को भी नौकरी दे दे तो कम से कम कच्चे जिले में दिव्यांगों की समस्या ही खत्म हो जाए।
गुजरात सरकार दिव्यांगों को सिर्फ ₹600 माह पेंशन देती है, जबकि अन्य राज्यों में 4000 से 5000 रुपए दिव्यांगों को पेंशन दी जाती है। कांग्रेस शासित राज्यों में गुजरात से ज्यादा पेंशन दिव्यांगों को दी जाती है, इसलिए शायद दिव्यांग अपना गुजर बसर कर सकते हैं, मगर ₹600 माह में दिव्यांग अपना गुजारा नहीं कर सकता। ये महंगाई से तंग आकर आंदोलन को बाध्य हए हैं।
वहीं इस मुद्दे पर प्रदेश कांग्रेस मंत्री कल्पना बहन जोशी कहती हैं, कच्छ जिले में जितनी भी कंपनियां हैं, उनको सीएसआर फंड में स्थानीय रिसोर्स यूज करने की एवज में कई सेवा कार्य करने होते हैं। उस सीएसआर फंड में से भी अगर दिव्यांगों की मदद की जाए तब भी इनका जीवन सुधारा जा सकता है, जबकि कंपनियों का सीएसआर फंड उत्सवों में खर्च किया जाता है। कई कंपनियों का सीएसआर फंड सिर्फ कागजों में ही खर्च होता है, जमीनी स्तर पर वह फंड का उपयोग नहीं करतीं। अगर उस फंड में से कुछ प्रतिशत दिव्यांगों के उपयोग में लाया जाए तो उनका जीवन स्तर सुधारा जा सकता है।