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विमर्श

CAA-NPR और दिल्ली दंगे के बहाने हिन्दू राष्ट्र की मुहिम को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है भाजपा

Prema Negi
8 March 2020 5:29 AM GMT
CAA-NPR और दिल्ली दंगे के बहाने हिन्दू राष्ट्र की मुहिम को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है भाजपा
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एक दिन बहुसंख्यक हिन्दुओं को भी इसकी वास्तविकता समझ में आएगी कि हमारे दुश्मन देश के मुसलमान नहीं, बल्कि देश का पूंजीपति वर्ग और साम्राज्यवादी लुटेरे हैं। यह भी कि देश की मोदी सरकार पूंजीपतियों की मैनेजमेंट कमेटी के रूप में काम कर रही है...

सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार मुनीष कुमार की टिप्पणी

रवरी 2020 के अंतिम सप्ताह में दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके में हुयी साम्प्रदायिक हिंसा दो समुदायों के बीच धार्मिक वैमनस्यता नहीं, बल्कि भारत सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन कानून (CAA), राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR), राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के खिलाफ चल रहे लोकतांत्रिक-शांतिपूर्ण आंदोलन का बर्बर दमन है।

CAA और NPR को लाकर मोदी-शाह की जोड़ी ने देश में जो नफरत भड़काई है, उसमें केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, गृहमंत्री अमित शाह, दिल्ली के भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा व पूर्व आप नेता कपिल मिश्रा जैसे लोगों ने मुस्लिमों व वामपंथियों के खिलाफ विष वमन करके आग में घी डालने का काम किया है। आंदोलनकारियों से वार्ता करके समस्या का समाधान निकालने की जगह ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को‘ जैसे नारे लगाकर बहुसंख्यक हिन्दुओं के बीच नरफत के बीज बोकर हिंसा का माहौल पैदा किया गया।

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अंत में इस सबकी परिणति उत्तर-पूर्वी दिल्ली में CAA, NPR और NRC के खिलाफ चल रहे आंदोलनों पर भाजपा की भगवा बिग्रेड के हमले के रूप में सामने आयी है। भारत की राज्य मशीनरी व भाजपा सं​रक्षित दंगाइयों ने मिलकर दिल्ली को नफरत की आग में झोंक दिया।

हमले की सुनियोजित साजिश 24-25 फरवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प भारत की यात्रा पर थे। इसी समय को जानबूझकर हिंसा करने के लिए चुना। सरकार ने दिल्ली के सुरक्षा बल सीआरपीएफ को विदेशी मेहमानों की सुरक्षा के लिए हैदराबाद हाउस में तैनात करवा दिया। मानो इस तरह केन्द्र सरकार ने भगवा बिग्रेड को दो दिन तक उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा करने की खुली छूट दे दी। इस दौरान केन्द्र सरकार अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की मेजबानी में व्यस्त होने का नाटक करती रही। मुख्यमंत्री केजरीवाल केन्द्र सरकार के खिलाफ बोलने व हिंसा रोकने का प्रयास करने की जगह राजघाट पर जाकर बैठ गये।

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24 फरवरी को दंगाइयों द्वारा पुलिस की मौजूदगी में CAA, NPR और NRC के खिलाफ धरने पर बैठे आंदोलनकारियों के टेंट को आग लगा दी, उनके धरनों पर पथराव किया गया। दिल्ली पुलिस हमले को रोकने की जगह मूकदर्शक बनी रही या फिर स्वयं भी वही सबकुछ करने लगी जो दंगाई कर रहे थे। सोशल मीडिया में वायरल हो रही पुलिस द्वारा राष्ट्रगान के लिए मुस्लिम नौजवानों की पिटाई, गोली चलाने व पथराव की घटना में शामिल पुलिस की फोटो वीडियो इलाहबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आनन्द नारायण मुल्ला की उस टिप्पणी की याद दिला देती है जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘पुलिस अपराधियों का सशस्त्र गिरोह है।'

में मरने वालों की संख्या 50 के पार पहुंच चुकी है। मरने वालों में मुस्लिमों की संख्या ज्यादा है। भयभीत मुस्लिम अपने घरों को वापस लौटने के लिए तैयार नहीं हैं। कई स्थानों पर उनकी बस्तियों को जलाकर खाक कर दिया गया है। इस दंगे का खामियाजा बहुसंख्यक हिन्दुओं को भी भुगतना पड़ा है।

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दिल्ली दंगों में मरने वालों की सूची में लगभग 15 नाम हिन्दुओं के भी हैं। हिन्दुओं के वाहन, आवास व दुकानों को भी इस हिंसा में अल्पसंख्यक मुसलमानों द्वारा नुकसान पहुंचाया गया है।

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने हिंसा प्रभावित क्षेत्र का दौरा करने के बाद अपनी प्राथमिक रिपोर्ट में कहा है कि दंगा करने वाले लगभग 2000 की संख्या में लोग बाहर से आए हुए थे। उन्होंने हैलमेट और मास्क पहने हुए थे। वे शिव विहार के राजधानी पब्लिक स्कूल व डीपीआर पब्लिक स्कूल में रुके हुए थे। उन्होेंने स्थानीय आबादी के सहयोग से मुस्लिमों के मकानों, दुकानों, वर्कशाॅप व उनके धार्मिक स्थलों को चुन-चुनकर निशाना बनाया। उनके अनुसार हिन्दुओं को भी इस हिंसा से नुकसान हुआ है, परन्तु मुस्लिमों का नुकसान 80-90 प्रतिशत तक है।

ल्पसंख्यक आयोग ने राजधानी स्कूल के एक ड्राइवर के बयान का हवाला देते हुए कहा है कि लगभग 500 लोग 24 फरवरी की शाम 6.30 बजे उत्तरपूर्वी दिल्ली के राजधानी स्कूल में घुसे हुए थे। वे अगले दिन शाम को पुलिस फोर्स के मौके पर पहुंचने के बाद वहां से चले गये। हथियारों से लैस ये लोग स्कूल की छत से पैट्रोल बम फेंक रहे थे। आयोग ने हिंसाग्रस्त क्षेत्र की विस्तृत जांच के लिए फैक्ट फाइंडिंग टीम भेजने की बात भी कही है।

file photo

देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने का प्रयास

हिन्दुस्थान हें हिन्दुवें राष्ट्र आहे (हिन्दुस्तान हिन्दुओं का राष्ट्र है) के नारे के साथ 1925 में अस्तित्व में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अस्तित्व में आया था। आरएसएस के अनुषंगी भाजपा के द्वारा विगत वर्ष दिसम्बर में संसद में बनाया गया नागरिकता संशोधन कानून(सीएए) देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की तरफ कदम है।

स कानून में भाजपा सरकार ने दिसम्बर 2014 के पूर्व से भारत में पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान से आकर रह रहे हिन्दू, सिख, जैन बौद्ध, ईसाई, व पारसियों को नागरिकता देने के लिए सीएए कानून बनाया है। इस कानून में भाजपा ने खासतौर से मुसलमानों आदि को नागरिकता देने से वंचित रखा है।

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भाजपा द्वारा लाया गया CAA देश के संविधान के अनुच्छेद 14 ‘कानून के समक्ष समानता’ के अधिकार का खुला उल्लंघन है।

RSS के पूर्व प्रमुख गोवरकर ने अपनी पुस्तक बंच आफ थाट्स में लिखा है 'हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि वे हमारे नेताओं को इतनी शक्ति दें कि हिन्दू राष्ट्र के निर्माण की दिशा में वे सही कदम उठाएं, ऐसा धर्म के रास्ते से ही हो सकता है। यदि हमारा नेतृत्व ऐसा कर पाता है तो वह इतिहास में अपना स्थान बना लेगा। फिर भारत के लोग उन्हें वैसे ही पूजेंगे जैसे शंकराचार्य को पूजा जाता है।'

के माध्यम से मोदी-शाह आरएसएस के पुराने एजेन्डे को ही आगे बढ़ा रहे हैं। ‘लोकतंत्र के स्तम्भ’ न्यायपालिका, कार्यपालिका विधायिका और यहां तक की मुख्य धारा के मीडिया के एक हिस्सा पर भी देश में साम्प्रदायिकता का प्रभाव दिखाई दे रहा है।

भारत बनेगा हिटलर का जर्मनी?

भाजपा द्वारा लाया गया सीए.ए व एन.पी.आर हिटलर के यहूदी विरोधी अभियान जैसा ही है। हिटलर द्वारा जर्मनी में यहूदियों को देशद्रोही करार देकर उनके सारे मानवाधिकार छीन लिए गये थे। 1935 में हिटलर ने यहूदियों को जर्मनी की नागरिकता से वंचित कर दिया और उन्हें सिर्फ जर्मन प्रजा कहा जाने लगा। यहूदियो की दुकानों का बायकाट किया जाने लगा। वहां पर सरकार की हर नीति की असफलता के लिए यहूदियों को ही जिम्ममेदार ठहराया जाने लगा। आर्य श्रेष्ठता का मिथ गढ़कर यहूदियों का लाखों की संख्या में कत्ले आम किया गया।

सी तरह का अभियान आज देश में भाजपा सरकार व उसकी भगवा बिग्रेड द्वारा मुसलमानों के खिलाफ चलाया जा रहा है। मुसलमानों को देश की हर समस्या का कारण ठहराया जा रहा है, उन पर तरह-तरह से हमले किए जा रहे हैं।

दिसम्बर में भाजपा द्वारा संसद के दोनों सदनों में सीएए पारित कराने के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने बयान दिया था कि क्रोनोलोजी को समझिए अभी सीएए आया है, इसके बाद एनआरसी लाया जाएगा।

रकार के इस कदम के बाद देश में जगह-जगह इस जनविरोधी, संविधान विरोधी सीएए के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन शुरू हो गये। सरकार ने आंदोलनकारियों से बातचीत करने की जगह आंदोलन के सीधे दमन का रास्ता अपनाया। शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोलियां बरसाई गयीं। भाजपा राज्यों समेत दिल्ली में आंदोलन का बर्बर दमन किया गया। दिसम्बर, 2019 में हुए प्रदर्शनों में 2 दर्जन से अधिक आंदोलनकारी खासतौर से भाजपा शासित राज्यों में पुलिस की गोली से मारे गये।

15 दिसम्बर को जामिया यूनिवर्सिटी के हाॅस्टल व पुस्तकालय में छात्रों पर हुए पुलिसिया हमले के विरोध में शाहीन बाग में महिलाओं व वहां की जनता ने राज्य के दमन, सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया तथा सड़क पर ही धरने पर बैठ गये। शाहीन बाग आंदोलन की ये फार्म देखते-देखते देश के लिए नजीर बन गयी। और देश के कई राज्यों में शाहीन बाग की तर्ज पर धरने शुरू हो गये।

देश में चल रहे सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ चल रहे आंदोलन के सीधे पुलिसिया दमन का साहस भाजपा की सरकार नहीं कर पाई तो उसने दमन का यह दूसरा तरीका अख्तियार किया गया है, जो कि उत्तर पूर्वी में हुयी साम्प्रदायिक हिंसा के रुप में दुनिया के सामने है।

देश की दुश्मन सरकार की लुटेरी नीतियां, मुसलमान नहीं

देश में आज वित्तीय अराजकता का दौर है। देश के 5वें नम्बर का बड़ा बैंक यस बैंक दिवालिया होने के कगार पर है। औद्योगिक विकास दर लगातार नकारात्मक बनी हुयी है। सरकार जनकल्याण व सब्सिडी पर होने वाले खर्च में कटौती करके हथियार खरीद रही है तथा पूंजीपतियों के कर्ज माफ करने में खर्च कर रही है। देश में महंगाई, बेरोजगारी चरम पर है।

बीमा समेत सार्वजनिक उपक्रमों को निजी पूंजीपतियों को सौंपा जा रहा है। सरकार ने 2020-21 के वित्तीय वर्ष में 2.10 लाख रुपये की सरकारी परिसम्पत्तियों के विनिवेश का लक्ष्य रखा है। अमेजाॅन व बाॅलमोर्ट जैसी कम्पनियों ने देश के खुदरा बाजार पर अपनी जकड़ मजबूत करती जा रही हैं। सरकार खुलकर पूंजीपतियों व साम्राज्यवादियों के हित में काम कर रही है।

रोजी, रोटी, रोजगार के सवाल जनता के लिए अहम् बनते जा रहे हैं। जिनका जवाब दे पाना देश की सरकारों के वश से बाहर हो चुका है। ऐसे में एक ही रास्ता बनता है कि देश की जनता के सामने एक छद्म दुश्मन खड़ा कर दिया जाए। देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं को बता दिया जाए कि तुम्हारी गरीबी, अभाव, बेरोजगारी का कारण मुसलमान हैं न कि सरकार की पूंजीवादी लुटेरी नीतियां।

भाजपा व संघ परिवार इस दुष्प्रचार को लोगों तक पहुंचाने में एक हद तक कामयाब भी होता हुया दिखाई दे रहा है, परन्तु मुसलमानों के खिलाफ ये दुष्प्रचार लम्बे समय तक इसलिये नहीं टिक पायेगा क्योंकि उन्हें साथ-साथ एक्सपोज भी किया जाने लगा है।

देर-सवेर बहुसंख्यक हिन्दुओं को भी इसकी वास्तविकता समझ में आएगी कि हमारे दुश्मन देश के मुसलमान नहीं, बल्कि देश का पूंजीपति वर्ग और साम्राज्यवादी लुटेरे हैं। यह भी कि देश की मोदी सरकार पूंजीपतियों की मैनेजमेंट कमेटी के रूप में काम कर रही है। देश को बचाना है तो हमें मुसलमानों से नहीं, बल्कि उन लोगों से लड़ने की जरुरत है जो देश की ज्यादातर धन सम्पदा पर कब्जा किए बैठे हैं।

(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के संयोजक हैं।)

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