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विमर्श

भारत ने लगायी प्रत्यक्ष निवेश पर पाबंदी, चीन को भी लेनी होगी व्यापार के लिए मोदी सरकार से इजाजत

Manish Kumar
21 April 2020 8:22 AM GMT
भारत ने लगायी प्रत्यक्ष निवेश पर पाबंदी, चीन को भी लेनी होगी व्यापार के लिए मोदी सरकार से इजाजत
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भारत सरकार ने 17 अप्रैल को एक नोटिफिकेशन जारी कर यह कहा है कि भारत की सीमा से लगे पड़ोसी देश अब 'ऑटोमैटिक रूट' के तहत प्रत्यक्ष निवेश नहीं कर पाएंगे...

वरिष्ठ पत्रकार पीयूष पंत का विश्लेषण

जनज्वार। अजब हाल है। चीन कोरोनावायरस महामारी के संकट से अभी उबरा ही था कि अमेरिका सहित दुनिया के दूसरे कई देशों ने उस पर आशंका ज़ाहिर करनी और आर्थिक दबाव लगाना शुरू कर दिया है। जहां अमेरिका कोरोनावायरस से निपटने में अपनी असफलता का ठीकरा 'जेनेटिक वॉर' के बहाने चीन के सिर फोड़ने पर आमादा दिखाई दे रहा है, वहीं भारत की मोदी सरकार ने भी पड़ोसी देशों के नागरिकों और कंपनियों द्वारा भारत में निवेश करने के क़ानून में बदलाव करके कहीं ना कहीं चीन के खिलाफ आर्थिक नाकेबंदी करने जैसा सन्देश ही दिया है।

भारत सरकार ने 17 अप्रैल को एक नोटिफिकेशन जारी कर यह कहा है कि भारत की सीमा से लगे पड़ोसी देश अब 'ऑटोमैटिक रूट' के तहत प्रत्यक्ष निवेश नहीं कर पाएंगे। यानी कि चीन सहित सभी पड़ोसी देशों को अब भारत में निवेश करने के लिए भारत सरकार की अनुमति की आवश्यकता होगी। गौरतलब है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश को ऑटोमैटिक रूट की सुविधा नहीं उपलब्ध थी।

जारी किये गए नए नियम चीन के साथ-साथ नेपाल, अफ़ग़ानिस्तान, म्यांमार और भूटान के नागरिकों और कंपनियों पर भी लागू होंगे। इन देशों की कंपनियों द्वारा ऑटोमैटिक रूट के माध्यम से टेल्कॉम, स्पेस, रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे 16 क्षेत्रों को छोड़ कर बाकी सभी क्षेत्रों में भरी निवेश किया जाता रहा है। इन देशों में चीन द्वारा निवेश सबसे ज़्यादा रहा है।

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भारत सरकार के उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय के तहत डिपार्टमेंट फॉर प्रोमोशन ऑफ़ इंडस्ट्री एंड इन्टर्नल ट्रेड विभाग ने 17 अप्रैल को एक नोटिफिकेशन जारी किया। इसमें कहा गया है कि वर्तमान महामारी का फायदा उठाते हुए भारतीय कंपनियों के अधिक्रमण पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने वर्तमान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति की पुनर्समीक्षा की है।

तदानुसार 2017 की समेकित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति में शामिल वर्तमान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति के पैरा 3.1.1 में संशोधन किया गया है। संशोधित पैरा अब कहता है कि भारत की ज़मीनी सीमाओं से लगे देशों में स्थित व्यापारिक इकाइयां, वहां रह कर भारत में निवेश कर लाभ कमाने वाला कोई व्यक्ति या वहां का कोई नागरिक बिना सरकारी अनुमति के भारत में निवेश नहीं कर सकता है।

हालांकि मोदी सरकार ने नोटिफिकेशन में भारत की ज़मीनी सीमा से लगे देशों की ही बात कही है और चीन का नाम नहीं लिया है लेकिन जानकारों का कहना है कि इस संशोधन का असली मक़सद लॉकडाउन के चलते बिगड़ते आर्थिक हालत का फायदा उठा कर भारतीय कंपनियों के अधिग्रहण से चीन को रोकना ही है।

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रअसल, करोना संकट के चलते भारतीय कंपनियों के शेयरों की कीमत बाजार में काफी गिर गई है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि चीन खुद या फिर दूसरे किसी पड़ोसी देश के जरिये भारत में अपना निवेश बढ़ा सकता है। इसके अलावा वो नई कंपनियां खरीद कर भारतीय अर्थव्यवस्था में सीधा दखल दे सकता है। कहा तो यह भी जा रहा है कि कोरोना संकट का फायदा उठा चीन और उसके जैसे तमाम देश, जिनके पास खरीदने की ताकत मौजूद है, अपने से कमजोर देशों में तेजी से कंपनियों और संस्थानों के अधिग्रहण करने में जुटे हैं।

पिछले दिनों चाइनीज सेंट्रल बैंक ने एचडीएफसी के करोड़ों शेयर खरीदे थे जिससे उसकी हिस्सेदारी कंपनी में 1 फीसदी को पार कर गई।यह भी रिपोर्ट आई थी कि चीन पूरी दुनिया में अपना निवेश तेजी से बढ़ा रहा है। कहा जा रहा था कि चूंकि कोरोना के कारण पूरी दुनिया का शेयर मार्केट क्रैश कर गया है और शेयर के भाव में भारी गिरावट आई है इसलिए चीन इसे एक अवसर के रूप में देख रहा है और तेजी से निवेश बढ़ा रहा है।

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वैसे भी चीन द्वारा दूसरे देशों में निवेश की रफ़्तार काफी तेज़ रहती है। पिछले साल ही चीन द्वारा 15 हज़ार करोड़ का निवेश भारत में किया जा चुका है। भारत चीन से डरा हुआ है इसीलिए गोदी मीडिया द्वारा मोदी जी और शी चिनफिंग की झूला झुलाने वाली दोस्ती का गुणगान करने के बावजूद भारत को चीन के आर्थिक कदमों को रोकने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति में बदलाव लाना पड़ा है।

लाजिमी है मोदी सरकार के अचानक उठाये गए इस कदम से चीन नाराज़ है। सोमवार 20 अप्रैल को चीन ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए भारत के नए नियम डब्ल्यूटीओ के गैर-भेदभाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं और मुक्त और निष्पक्ष व्यापार के खिलाफ हैं। चीन ने आशा व्यक्त की कि भारत 'भेदभावपूर्ण प्रथाओं' को संशोधित करेगा।

चीनी दूतावास के प्रवक्ता जी रोंग ने एक बयान में कहा, ''भारतीय पक्ष द्वारा विशिष्ट देशों से निवेश के लिए लगाई गई अतिरिक्त बाधाएं डब्ल्यूटीओ के गैर-भेदभाव वाले सिद्धांन्त का उल्लंघन करती हैं, और उदारीकरण तथा व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने की सामान्य प्रवृत्ति के खिलाफ हैं। अधिकारी ने कहा कि ''अतिरिक्त बाधाओं को लागू करने वाली नई नीति G-20 समूह में निवेश के लिए एक स्वतंत्र, निष्पक्ष, गैर-भेदभावपूर्ण और पारदर्शी वातावरण के लिए बनी आम सहमति के खिलाफ भी है।

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दो राय नहीं कि मोदी सरकार के इस कदम से चीन को झटका लगा है क्योंकि कोरोना के इस दौर में जहां चीन को दूसरे देश की कंपनियों को हड़पने का अवसर हाथ लगा है वहीं लॉकडाउन की वजह से उसकी अपनी अर्थव्यवस्था भी कमज़ोर पडी है। ऐसे में अबाध्य रूप से भारत में निवेश करने पर रोक से अपनी अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के उसके मंसूबों पर पानी फिर सकता है।

लेकिन मोदी सरकार के इस कदम से हो सकता कुछ भारतीय कंपनियां चीन द्वारा खरीदे जाने से बच जाएँ लेकिन उन स्टार्ट आप कंपनियों का क्या होगा जिनमें भारी चीनी निवेश किया गया है। खुदा ना ख़ास्ता अगर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफ़िंग की भृकुटी तन जाती हैं और वे इन कंपनियों से चीनी निवेश वापिस ले लेते हैं तो डूबने के कगार पर खड़ी भारतीय अर्थव्यवस्था निवेश के अभाव में क्या रसातल पर नहीं पहुँच जाएगी ?

खुद आंकड़े गवाह हैं इस बात के कि चीन ने कितना अधिक निवेश भारत की स्टार्ट आप कंपनियों में किया है। इण्डिया-चाइना इकोनॉमिक एंड कल्चरल काउन्सिल के अनुमान के हिसाब से टेक निवेशकों ने भारत की स्टार्ट अप कंपनियों में 4 बिलियन डॉलर का मोटा निवेश किया हुआ है। पिछले कुछ सालों में चीन का निवेश इस क्षेत्र में इतनी तेज़ गति से बढ़ा है कि भारत की 30 बड़ी स्टार्ट अप्स में से 18 चीनी निवेश से चलती है।

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मुंबई स्थित गेटवे हॉउस संस्था के अनुसार चीनी वीडियो ऐप टिक-टॉक के भारत में 200 मिलियन उपभोक्ता हैं और इसने भारत में यूं ट्यूब को पीछे छोड़ दिया है। यही हाल अलीबाबा, टेनसेंट और बाइट डांस का है जिन्होंने क्रमशः अमेरिका की फेसबुक, अमेज़ॉन और गूगल को भारत में पिछाड़ दिया है। इसी तरह चीन के स्मार्ट फोन्स ओप्पो और जिओमी की भारत में तूती बोलती है। स्मार्ट फोन्स के बाज़ार में इनकी हिस्सेदारी 72 फीसद है।

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