Begin typing your search above and press return to search.
उत्तर प्रदेश

कानपुर शहर की दो दलित बस्तियों में 1500 लोगों के बीच एक भी शौचालय नहीं, बबूल का जंगल ही निपटान का एकमात्र आसरा

Prema Negi
20 April 2020 9:55 AM IST
कानपुर शहर की दो दलित बस्तियों में 1500 लोगों के बीच एक भी शौचालय नहीं, बबूल का जंगल ही निपटान का एकमात्र आसरा
x

गोरेलाल बाल्मीकि शौचालय के बारे में पूछने पर तमतमाते तो हैं, पर कुछ ही देर में शांत भी हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें भी पता है कि वो बनवा नहीं सकते और सरकार बनवाने से रही....

कानपुर से मनीष दुबे की ग्राउंड रिपोर्ट

जनज्वार। दलित बस्ती की माया राशन की दुकान से लौटकर बिफर गई। माया खाली झोला और राशन कार्ड लेकर कोटेदार के पास गई थी, वैसे ही वापस आई है। पूछने पर बोली 'कोटेदार कह रहा, 5 साल वाले कार्ड सब खतम हो गए अब नए बनवाओ। फार्म भरे, सब रख लेत हैं। देतै नहीं, लौटा दिया राशन आज भी नहीं दिया।'

कानपुर की इस गोपालनगर व शिवनगर की कच्ची बस्ती में रहने वाली कई माया और पचासों कलावती परेशान हैं। पहले सब पानी, शौचालय, रोजगार के लिए परेशान थे तो अब लॉकडाउन में दो वक्त की रोटी के लिए परेशान हैं।

यह भी पढ़ें : यूपी के 40 जिलों में नहीं हो रहा लॉकडाउन का पालन, योगी सरकार ने सख्ती बरतने को कहा

जाद कुटिया पीले पुल से सचान की रास्ता पर दोनों तरफ लगभग डेढ़ से दो किलोमीटर के दायरे के बीच पड़ने वाली गोपाल नगर कच्ची बस्ती का यह सीन था। यह बस्ती 1980 में जब बनी थी, तब यहां मात्र 5 मकान थे। गोविंदनगर विधानसभा 212 में आने वाला यह वार्ड 07, वक्त दर वक्त लगभग 355 मकानों की कालोनियों में तब्दील हो गया, पर नहीं बदली तो इनमें रहने वालों की मूलभूत सुविधाएं।

अपनी तकलीफ बताते बस्ती के लोग

न कॉलोनियों के सामने ​बहने वाली नहर का पानी अब नालेनुमा दिखने लगा है, जिसके कारण मच्छर-मक्खियों की आमद अधिक रहती है। यहां की तकरीबन 1500 की आबादी में किसी के भी पास शौचालय तक कि व्यवस्था नहीं है।

स्ती के निवासी 50 वर्षीय मनोज शर्मा बता रहे हैं कि इन सभी मकानों में रहने वाले लोगों की संख्या करीब करीब 1500 से अधिक ही होगी। इनमें ज्यादातर लोग दलित हैं, जिनकी रिहायश 80 प्रतिशत है, बाकी 20 प्रतिशत अन्य जातियां रहती हैं। इन निवासियों में ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर, राजमिस्त्री और घरों में काम करने वाले लोग रहते हैं।

यह भी पढ़ें- यूपी के कानपुर में फसल काटने गए किसान के घर लगी आग, 3 बच्चों की जलकर मौत

नोज नहर के बारे में पूछने पर नाले का ढक्कन हटाकर दिखाता है और कहता है, 'आप नहर की बात कर रहे हैं, ये देखिये कितनी गंदगी है। हम लोग कीड़े-मकौडों की तरह जिंदगी काट रहे हैं बस। मनोज कहता है, पूरी बस्ती में चार लोग नगर निगम की सरकारी नौकरी करते हैं, पर नाले तक साफ नहीं हो पाते। यहां के पार्षद हैं गिरीश चंद्रा वो ध्यान नहीं देते, हर बार हो जाएगा-हो जाएगा कहकर अपनी ही चमकाते रहते हैं।'

स बस्ती के 1500 से अधिक लोगों के बीच 8 हैंडपंप लगे हुए हैं, लेकिन काम सिर्फ एक ही करता है, इंडिया मार्का। 40 साल से अधिक के समय मे दुर्भाग्य कहें या नजरअंदाजगी, जो यहां अब तक किसी को भी शौचालय नहीं मिल पाया, जबकि यूपी को स्वच्छता में नंबर वन स्थान हासिल है। शायद इनकी गिनती राज्य में न होती है।

यह भी पढ़ें- मेरठ के प्राइवेट अस्पताल ने अखबार में छपवाया मुस्लिमों का इलाज न करने वाला ​विज्ञापन, फिर मांगी माफी

स्ती के लोग कहते हैं, अगर बस्ती के पीछे बबूल का बड़ा जंगल न होता तो यहां हालात न देख पाने वाले हो सकते थे। ऐसे में लॉकडाउन इनके लिए बहुत बड़ी मुसीबत लेकर आया है। इस मुसीबत के बाद यहां के कई लोग चिड़चिड़े से रहने लगे हैं।

हां रहने वाले 30 वर्षीय राजू, रमेश बाल्मीकि, गोरेलाल बाल्मीकि शौचालय के बारे में पूछने पर तमतमाते तो हैं, पर कुछ ही देर में शांत भी हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें भी पता है कि वो बनवा नहीं सकते और सरकार बनवाने से रही। गुस्सा करके खुद का खून जलाने से क्या फायदा?

हीं के लल्लू बेहद गुस्से में बैठे दिख रहे हैं। घर से अपना राशन कार्ड उठा लाये और हमें दिखाते हुए कहते हैं 'साहब हमारी समस्या ये है कि हमे राशन नहीं मिल रहा है, मैं मजदूर आदमी मेरे 6 बच्चे हैं, न मजदूरी मिले अब। जब काम नहीं मिल रहा तो मजदूरी कौन देगा। 5-5 किलो आटा यहां वहां से मांगकर ला रहे हैं। राशन लेने जाते हैं तो कह रहे 1 यूनिट वालों को नहीं मिलेगा, फिर कहा अप्रैल में आओ देखेंगे अभी 'कोरोना वारिस' लगा है। मर रहे कोरोना वारिस में करें तो क्या करें। बस बैठे हैं साहब भूखे। या है मोदी..मोदी..मोदी पंडतन की सरकार है तौ अपन जलवा जोते हैं, राशन चलोगा गंगाजी मा.. न समझे।'

लल्लू यहीं नहीं रुकता, आगे कहता है, 'साहब मेरे 6 हों बच्चों को बुलाव, पूछ लो घर में क्या है। उन्ने क्या खाया है। जिसके पास नौकरी है उन्हें 25-25, 30-30 किलो मिल रहा है। सबको सबकुछ मिल रहा है। हमें कुछ नहीं मिल रहा है।' फिर आगे चिढ़कर बोलता है, 'हम रहीश हैं हमारी दादा नगर में 5-5 फैक्टरियां चल रही हैं। यादव मार्केट के पास मेरी 5-5 दुकाने हैं, परचून की, फिर भी हम भूखों मर रहे।'

यह भी पढ़ें : मेरठ के प्राइवेट अस्पताल ने अखबार में छपवाया मुस्लिमों का इलाज न करने वाला ​विज्ञापन, फिर मांगी माफी

'क्या करें कोई सुनने को तैयार नहीं है, कोई सुनिह नहीं रहा। कह रहे लॉकडाउन लगा है, तो भाई लगा रहे लॉकडाउन। मरना तो वैसेव है। यह देखो कार्ड सब पन्ना खाली हैं। यो लाव, वो लाव यो दिखाव सब पूरे कार्ड लई के जाते हैं। 10 सियों बार कार्ड लगाया साला एको बार सक्सेस नहीं हुआ। कहते हैं 100 रुपया लाव, तब बनइहैं। अब 100 रुपया कहां से लाएं, यहां 1 रुपिया नहीं है पाउच तक खाने को। जो मरना है सो मरो।'

सी दलित बस्ती का निवासी रामकुमार बोरी में कंडे का चूरा दिखाते हुए कहता है 'कण्डन के चूरा औ लकड़ी ते जइसे तइसे रोटी जब कब बन रही। एक आध ठांय कहूं मिली गया तौ मिली गया नाहीं वाहो ठिकाना नहीं है। 6 ठौ बच्चा हैं साहब, देख लेव कैसे खड़े हैं। मेहरिया पागल है। न काम है न कमाई, कहूं जाव तौ पुलिस वाले अलग लाठी मारत हैं। छोटे-छोटे बच्चा हैं साहब, चावल मिलत हैं ओहमा पेट नाइ भरत है। सब बच्चा बिलख-बिलख रई जात हैं। इत्ती दिक्कत है साहब की रो-रो के बताए चुकता है। 100-100 रुपया माँगते हैं, हानि-लाभ राशन का। अईसी सरकार ते तौ हम मरी जान।'

यह भी पढ़ें- खुद को मुस्लिम बता थूककर कोरोना फैलाने की धमकी देने वाले तीनों युवक निकले हिंदू

थोड़ा आगे इसी नहर से दूसरी तरफ पड़ने वाली शिवनगर दलित बस्ती का भी लगभग यही हाल है। यहां का निवासी दिव्यांग बबलू कुमार कहता है, 'सर ये पूरी दलित बस्ती है। जीवन बिल्कुल बेकार हुआ जा रहा है लॉकडाउन के चक्कर में। मलिन बस्ती है आप खुद देख लो, सामने हो। सबके खातों में रुपये आ रहे हमने भी 0 बैलेंस वाले खाते खुलवाए थे, हम कहीं कुछ नहीं मिला, कहां से भला हो जाएगा हम लोगों का। जी रहे हैं किसी तरह मरने के लिए'। इस दलित बस्ती में भी कुछ लोगों को छोड़ बाकी लोग शौचालय की दिक्कत से त्रस्त हैं। बबलू कहता है साहब शौचालय के नाम पर है तो बस खुला आसमान।

यह भी पढ़ें- कोरोना की महामारी के बीच पिछले 2 हफ्तों में पंजाब के 1800 NRI गए विदेश

हां रहने वाली कलावती कहती हैं 'बहुत दिक्कत में जिंदगी चल रही है। न काम है न कुछ, मेहनत मजदूरी खत्म हो गई। भीख मांगने का समय आ गया है। पहले दो चार दिन पूड़ी-पाड़ी मिली, अब वो भी नहीं मिल रही। खिचड़ी या चावल मिल रहा है। कंट्रोल का भी यही हाल है, चावल ही मिल रहा है कभी तो वो भी नहीं मिलता। अब चावल या खिचड़ी खाकर कितने दिन गुजारा चलेगा। एक बार की पेशाब में पेट खाली हो जाता है।'

गे बढ़ने पर मिला दलित जाति से ताल्लुक रखने वाला रामू कह रहा है 'जो थोड़ा बहुत मिल जाता है गुजारा कर रहे हैं। सरकार अपने वादे के मुताबिक काम ही नहीं कर पा रही है। हर आदमी परेशान है। सरकार वादों के अलावा हर आदमी के पास सुविधाएं नहीं पहुचा पा रही है। जिस तरह से ये लोग कहते हैं उस तरह का काम नहीं हो पा रहा है। कार्यकर्ता लोग आते हैं आकर चले जाते हैं फिर नहीं आते। हर आदमी खुशहाल हो जाये तो वो क्यों किसी के पास जाए। क्यों किसी से अपना दुख विपत्ति कहे बताए। क्यों वो किसी के आगे हाथ फैलाए।'

योगीराज : मजदूर पिता का आरोप बिस्कुट लेने गया था बेटा और पुलिस ने पीट—पीट कर मार डाला

ब इस संबंध में जनज्वार ने गोविंदनगर विधानसभा 212 की इस गोपालनगर कच्ची बस्ती वार्ड 07 के पार्षद गिरीश चंद्रा को फोन कर उनके वार्ड की हालत बताई, तो उन्होंने कहा कि उनके इस वार्ड में सबको टाइम से खाना मिल रहा है, सारी सुविधाएं व्यवस्थाएँ मौजूद हैं। जब शौचालय की बाबत पूछा गया तो पार्षद जी ने सीवर लाइन बनी होने की बात कही। आठ से दस चेम्बर बने होने का हवाला दिया।

आंखों देखा सच और भुक्तभोगियों की बात सुनने के बाद लगा कि क्या पता पार्षद जी को सीवर लाइन, चैम्बर और शौचालय के बीच आज तक भेद सिर्फ अपने ही घर मे समझ आता हो, बाकी उनको वोट देकर जिताने वाली जनता के लिए खुला आसमान तो है ही।

Next Story

विविध